Breaking

Sunday, September 22, 2019

6:31 PM

sata cable full detail in hindi | साटा केबल क्या है

sata cable full detail in hindi ( साटा केबल क्या है )

sata cable full detail in hindi ( साटा केबल क्या है ), sata cable full detail in hindi ( साटा केबल क्या है ), sata cable full detail in hindi ( साटा केबल क्या है ), sata cable full detail in hindi ( साटा केबल क्या है ) 
दोस्तों आज के इस पोस्ट में हम साटा केबल के बारे में विस्तार से जानेंगे। कि साटा केबल किस स्पीड में पाया जाता है। साटा केबल में क्या-क्या फंक्शन होते हैं। उसके अंदर कितने तार होती है। इन सभी बातों के बारे में आज के इस पोस्ट में हम विस्तार से जानेंगे। तो चलिए बिना वर्क गवाए स्टार्ट कर लेते हैं।साटा केबल का फुल डेफिनेशन जान लेते हैं, अर्थात इस का फुल फॉर्म जान लेते हैं।
sata male female connector
sata male female connector

Sata cable full form


------" Serial advanced technology attachment "-------

साटा केबल ( Sata Cable ) के बारे में अन्य बातें ( साटा केबल क्या है )


दोस्तों आजकल जो भी कंप्यूटर यूज कर रहा है, उसको साटा केबल के बारे में पता जरूर होता है। पर कुछ लोग ऐसे होते हैं, जिनको साटा केबल के बारे में आज भी पता नहीं है, इसीलिए मुझे यह पोस्ट लिखना पड़ रहा है। तो आज के इस पोस्ट में, मैं साटा केबल के बारे में पूरी तरह से बताऊंगा। तो पढ़ते रहिए हमारा यह पोस्ट।

Sata Cable

sata cable full detail in hindi ( साटा केबल क्या है )
SATA Cable

दोस्तों साटा केबल ( Sata Cable ) मुख्य रूप से चार प्रकार के पाए जाते हैं। पर इन चारों प्रकार के साटा केबल में एक बात कॉमन होती है। वह यह होती है, कि इस केबल में कुल 7 pin  होते हैं, अर्थात साथ वायर होते हैं।

साटा केबल में दो प्रकार के कनेक्टर पाए जाते हैं, एक जो आपके कंप्यूटर के मदरबोर्ड में जो लगा हुआ होता है वह। और उस केबल का जो कनेक्टर होता है। इन दोनों कनेक्टर को मेल फीमेल कनेक्टर कहा जाता है।

sata cable detail

अब हम साटा केबल ( Sata Cable ) की स्पीड और वह किस सन में निकला था, किस साल में निकला था। उसके बारे में जानते हैं।

Sata 1.0a – January 2003 :  Speed – (150 MB/s, 1.5 Gb/s )
SATA 2.0 – April 2004 : Speed (300 MB/s, 3 Gbit/s )

SATA 3.0 – July 2008 : Speed (600 MB/s, 6 Gbit/s)

SATA 3.2 – August 2013 : Speed (1969 MB/s, 16 Gbit/s)

दोस्तों जैसा कि मैंने आपको ऊपर बताया था। कि साटा केबल चार प्रकार के पाए जाते हैं, जो मैंने ऊपर बता दिया है। अब इनके बारे में थोड़ा और विस्तार से जान लेते हैं।
इसमें जो पहले नंबर का है, साटा 1.0 a  यह साटा कनेक्टर का मॉडल नंबर होता है। उसके पास वह किस सन में निकला था, वह लिखा हुआ है। इसके बाद उसकी स्पीड लिखी हुई है। कि यह साटा connector 150 mb से लेकर 1.5 GB  पर सेकंड की स्पीड तक कार्य करती हैं। तो इस प्रकार आप समझ सकते हैं कि बाकी तीन प्रकार के साटा कनेक्टर अर्थात सता केबल किस तरह से कार्य करते हैं। और किस सन में बने हैं।

साटा केबल ( Sata Cable ) का उपयोग  (sata cable full detail in hindi | साटा केबल क्या है )

आप ने हमारे पिछली पोस्ट में पढ़ा होगा। कि मैंने उस पोस्ट में IDE Cable के बारे में आपको बताया है, कि IDE Cable क्या होता है। और किस तरह से वह कार्य करता है। किन किन जगह पर उसका उपयोग लिया जाता है। ठीक उसी प्रकार साटा केबल का भी उपयोग लिया जाता है, पर यह साटा केबल IDE Cable से काफी ज्यादा स्पीड में कार्य करता है। और यह साटा केबल IDE Cable के रिप्लेसमेंट में आया है, अर्थात IDE Cable को बंद करने के बाद साटा केबल लाया गया है। क्योंकि साटा केबल बहुत ही आसानी से उपयोग में लिया जा सकता है। और यह खराब भी बहुत कम होता है। साथ ही साथ इसकी स्पीड भी IDE Cable से काफी ज्यादा होती है।

साटा केबल को मुख्य रूप से मदरबोर्ड को हार्ड डिक्स के साथ कनेक्ट करने के लिए, तथा डीवीडी राइटर के साथ कनेक्ट करने के लिए काम में लिया जाता है।
वैसे साटा केबल को कंप्यूटर के अलावा और भी कई उपकरणों में उपयोग में लिया जाता है। पर आज के इस पोस्ट में, मैं मुख्य रूप से कंप्यूटर के बारे में ही बता रहा हूं। तो मैंने दूसरे उपकरणों का नाम नहीं बताया है।

NOTE :-

तो दोस्तों हमारे आज के पोस्ट में बस इतना ही था। आपको हमारा यह पोस्ट कैसा लगा। हमें कमेंट करके जरूर बताइए, साथी साथ अगर आपको यह पोस्ट अच्छा लगा है, और आप टेक्नोलॉजी से जुड़े हुए बातें और भी सीखना चाहते हैं। तो आप हमारे चैनल के साथ जुड़े रहिए। तो चलिए अभी के लिए चलते हैं, और फिर मिलेंगे नेक्स्ट पोस्ट पर। 
1:48 PM

ide cable full detail | आईडीई केबल क्या है

ide cable full detail ( आईडीई केबल क्या है )

ide cable full detail, ide cable full detail, ide cable full detail, ide cable full detail
IDE ( Integrated Drive Electronics ) केबल
ide cable full detail
ide cable

दोस्तों आज के इस पोस्ट में हम आईडीई केबल ( IDE Cable ) के बारे में विस्तार से जानकारी लेंगे, और जानेंगे कि आईडीई केबल ( IDE Cable ) क्या होता है, इसके क्या क्या उपयोग है, और किन जगहों पर इनको मुख्य रूप से उपयोग में लिया जाता है। तो चलिए बिना वक्त गवाए स्टार्ट कर लेते हैं।

दोस्तों आईडी केबल को कई नामों से जाना जाता है, जैसे कि इसका 2 नाम निम्न है :-
ATA और PATA

( 1 ) ATA ----------- advanced technology attachment
( 2 ) PATA --------- parallel advanced technology attachment

दोस्तों इनका मुख्य तौर पर इस्तेमाल सीडी राइटर, डीवीडी राइटर तथा अपने कंप्यूटर के हार्ड डिक्स को मदरबोर्ड के साथ कनेक्ट करने के लिए किया जाता है।

आईडीई केबल ( IDE Cable ) का कार्य ide cable full detail )

आईडीई केबल ( IDE Cable ) का कार्य
आईडीई केबल ( IDE Cable ) का कार्य

दोस्तों आईडीई केबल ( IDE Cable ) का सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण काम यही होता है, कि वह दो यंत्रों के बीच कनेक्टिविटी करता है। और दोनों में तालमेल बनाकर डाटा ट्रांसफर करने में मदद करता है। दोस्तों आईडीई केबल की लंबाई 18 इंच ही होती है, और इसकी डाटा ट्रांसफर करने की स्पीड 16 एमबी ( 16 MB ) पर सेकंड होती थी, पर आज के जमाने में जो लेटेस्ट में IDE Cable आ रही है। वह 133mb पर सेकंड की स्पीड से डाटा ट्रांसफर कर सकती है।

दोस्तों IDE Cable में 40 pin  से 80 pin  जोड़ने की क्षमता होती है, अर्थात IDE Cable में 40 पिन से 80 पिन जुड़ सकती है, जो कि तीन भागों में होता है। अर्थात इसमें तीन कनेक्टर होते हैं, जो तीन कनेक्टर अलग-अलग रंगों में हमें मिल जाते हैं।

IDE Cable के तीन कलर के कनेक्टर का कार्य निम्न है :-


( 1 ) IDE Cable में नीला कलर का कनेक्टर मदरबोर्ड से जुड़ा होता है।
( 2 ) IDE Cable में काला कलर का कनेक्टर मास्टरड्राइव से जुड़ा होता है, अर्थात काले कलर के कनेक्टर को आप हार्ड डिक्स तथा डीवीडी राइटर दोनों से जोड़ सकते हैं।
( 3 ) ग्रे कलर का कनेक्टर काले कलर के कनेक्टर की तरह ही कार्य करता है, और इस कनेक्टर को भी आप डीवीडी और हार्ड डिक्स से जोड़ सकते हैं।

IDE Cable के एक साइड में आपको रेड कलर की एक पट्टी दिखाई देगी। उस रेड कलर के पट्टी का मतलब यह होता है कि वह पट्टी वाला तार एक नंबर है, अर्थात वह एक नंबर को दर्शाता है।

IDE Cable के प्रकार ( ide cable full detail )

ide cable types
ide cable full detail

दोस्तों IDE Cable के मुख्य रूप से तीन प्रकार के केबल पाए जाते हैं।
यह तीन प्रकार के केबल निम्न है :-
40 पिन की IDE Cable
44 पिन की IDE Cable
80 पिन की IDE Cable

40 पिन की IDE Cable


दोस्तों इस केबल में 40 अलग-अलग तार को एक रिबिन की तरह बनाकर इस केबल को बनाया गया है। इसमें मुख्य रूप से तीन कनेक्टर होते हैं, और कुछ IDE Cable में इन कनेक्टर की संख्या 2 भी होती है। पर काम एक ही होता है। इसमें से एक मदरबोर्ड से जुड़ा होता है, तथा दूसरा IDE Cable हार्ड डिक्स डीवीडी राइटर  से जुड़ा होता है। अगर तीन कनेक्टर उसमे होंगे तो एक कंप्यूटर के मदरबोर्ड से जुड़ेगा और एक हार्डडिक से जुड़ेगा। और तीसरा डीवीडी राइटर से जुड़ेगा। पर दोस्तों यह जो 40 pin का IDE Cable होता है। यह काफी धीरे डाटा ट्रांसफर करता है, अब इसका उपयोग बहुत ही कम हो देखने को मिलता है। और अभी आप मार्केट में खरीदने जाएंगे तो 40 दिन के IDE Cable आपको नहीं मिलेंगे।

44 पिन के IDE Cable


दोस्तों इस केबल का इस्तेमाल ज्यादातर लैपटॉप में किया जाता है, और यह ठीक 40 पिन के IDE Cable की तरह ही कार्य करता है। पर यह लैपटॉप में ही सबसे ज्यादा उपयोग में लिया जाता है।

80 पिन की IDE Cable


दोस्तों आज के जमाने में इस IDE Cable का उपयोग सबसे ज्यादा किया जाता है, क्योंकि यह 40 pin की तुलना में दुगने स्पीड से कार्य करता है, और इसकी डाटा ट्रांसफर रेट भी बहुत ही ज्यादा है। हालांकि अभी IDE Cable का उपयोग बहुत ही कम हो गया है, पर आपको ज्यादातर 80 पिंन का ही आईडी केबल देखने को मिलेंगा।

NOTE :-

तो दोस्तों हमारा आज का यह पोस्ट बस इतना ही था। अगर आपको हमारा यह पोस्ट पसंद आया हो तो, हमें कमेंट करके जरूर बताइए। तो चलिए चलते हैं, और फिर मिलेंगे नेक्स्ट पोस्ट पर। 

Saturday, September 21, 2019

7:36 PM

सीडी और डीवीडी की पूरी जानकारी | cd and dvd difference

सीडी और डीवीडी की पूरी जानकारी | cd and dvd difference 

दोस्तों आज के इस पोस्ट में हम सीडी ( CD ) और डीवीडी ( DVD ) के बीच अंतर करेंगे। की सीडी और डीवीडी में क्या फर्क होता है, और यह किस तरह से बना होता है। इन का फुल फॉर्म क्या होता है। साथ ही साथ इनके बारे में और भी कई चीजें हम जानेंगे। जो कि आम लोगों को पता नहीं होती है। तो चलिए अब बिना वक्त आज का यह टॉपिक स्टार्ट कर लेते हैं।

तो दोस्तों सबसे पहले हम सीडी और डीवीडी का फुल फॉर्म जान लेते हैं।

CD DVD full form


CD ----  CD का full form " compact disc " होता है।

DVD --- DVD ka full  form " digital versatile disc और  digital video disc होता है।

सीडी क्या है ? और सीडी का विकास


दोस्तों जैसा कि आप लोग जानते हैं, की पुराने जमाने में रील वाले कैसेट मिलते थे। उसके बाद सबसे पहले 1979 के दशक में फिलिप्स और सोनी कॉरपोरेशन ( Philips and Sony Corporation ) ने एक सीडी का निर्माण किया। जिसे कॉम्पैक्ट डिस्क ( compact disc ) कहा जाने लगा। और कुछ लोग इसे उस वक्त डिजीटल ऑडियो स्टैंडर्ड ( Digital Audio Standard ) के नाम से भी जानते थे।

CD का निर्माण


दोस्तों सीडी का निर्माण पॉली कार्बोनेट बफर से किया गया। यह एक तरह का मैटेरियल होता है, इसी से ही सीडी बना था। और इस सीडी का आकार 120 मिलीमीटर के डायमीटर का होता है, और इसकी मोटाई 1.2 मिलीमीटर होती है।

CD के बीचो-बीच 15 मिलीमीटर का एक होल होता है। जिसके पास ही एक सिंगल फिजिकल ट्रैक बना होता है।

 डीवीडी क्या है और डीवीडी का विकास


 दोस्तों सीढ़ी पहले के जमाने में यूज किया जाता था। पर जब डीवीडी का नंबर आया, तो सीढ़ी मार्केट से गायब ही हो गया। और सीडी का यूज़ लेना लोगों ने बंद कर दिया। डीवीडी सर्वप्रथम 1995 के करीब आया था। और डीवीडी के अंदर 4.7 GB से लेकर 17 GB तक का डाटा स्टोर हो सकता था, और डीवीडी की क्षमता सीडी से 11 से 12 गुना अधिक हो सकती है।

दोस्तों अब हम एक इमेज की सहायता से सीडी को समझते हैं।
सीडी और डीवीडी की पूरी जानकारी | cd and dvd difference
सीडी और डीवीडी की पूरी जानकारी

दोस्तों सीडी में जो आपको चमकीला चमकीला जो भी भाग दिखाई देता है, जो चमकता रहता है। वह प्रोग्राम एरिया होता है। फिर इसके अंदर आपने एक छेद देखा होगा। वह छेद 15 mm का होता है। और इसके पास ही आप देखेंगे, कि एक पट्टी चलती रहती है। एक्चुअल में यह दो पट्टी होती है। एक जो बड़ा वाला सर्कल होता है। वह 25 एमएम का होता है। और एक जो छोटा सर्कल होता है वह 23mm का होता है। और पूरे सीडी का डायमीटर 120mm होता है।

दोस्तों अब हम जानते हैं, कि सीडी और डीवीडी किस तकनीक पर आधारित होते हैं।

सीडी और डीवीडी किस तकनीक पर आधारित होते हैं ?


इन दोनों में कोई ज्यादा फर्क नहीं होता है। इन दोनों का डायमीटर 120mm ही होता है। और दोनों ही मेरा मतलब के सीडी और डीवीडी दोनों ही पॉली कार्बोनेट बेस से ही बना होता है। अर्थात उस पर ही आधारित होता है। यह इन दोनों के मुख्य अंतर है। सीडी में सिर्फ एक लेयर होता है, और डीवीडी में 2 लेयर पाए जाते हैं। जिसकी वजह से सीडी के मुकाबले डीवीडी की क्षमता बहुत ही ज्यादा होती है।

सीडी सिंगल लेयर की होने की वजह से इसमें सिर्फ एक साइड ही डाटा स्टोर किया जा सकता है। इसीलिए इसमें सिर्फ 700mb तक का ही डाटा स्टोर किया जा सकता है। पर dvd 2 लेयर की होती है। इसीलिए इसकी कैप्सिटी सीडी के मुकाबले काफी ज्यादा होती है। और लगभग 10 से 11 गुना ज्यादा इसकी केपेसिटी हो सकती है। इसके अलावा डीवीडी हाई डेंसिटी रिकॉर्डिंग और रीडिंग के लिए लेजर की शार्टवेव का इस्तेमाल करती है। अब हम सीडी के लेयर बारे में जानते हैं।

सीडी के लेयर ( CD ) की परतें

CD ALL layers
CD ALL layers

 दोस्तों मुख्य रूप से CD में 4 तरह की परतें पाई जाती है, जिनको हमने A , B , C , D  में बांट दिया है।

( A ) पहली परत


दोस्तों सीडी की जो पहली परत होती है, उस परत में कई सारे डॉट बने हुए रहते हैं। जिन डॉट में सारा डाटा स्टोर रहता है। यह पॉली कार्बोनेट डिस्क होता है।

( B ) दूसरी परत 


दूसरी परत एक चमकदार परत होता है। जो लेजर को प्रतिबिंबित अर्थात लेजर को रिफ्लेक्ट करने का कार्य करता है।

( C ) तीसरी परत 


यह परत चमकदार परत को सेफ रखने का कार्य करता है, अर्थात तीसरी परत दूसरी परत की रक्षा करने का कार्य करता है।

( D ) चौथा परत


यह सबसे ऊपर वाला परत होता है, और इसी के ऊपर ही सीढ़ी की कंपनी का नाम लिखा हुआ होता है। साथ ही कुछ चित्र बने हुए रहते हैं।

( E ) लेजर 

यह लेजर होता है, जो कि सीडी के डाटा को रीड करने का कार्य करता है। जिसका इमेज आप को दिख रहा होगा।

सीडी का उपयोग


 सीडी का उपयोग डाटा को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने के लिए, या अपने  पर्सनल छवियों को सेव रखने के लिए सीडी का उपयोग होता था। और साथ ही साथ यह मल्टीमीडिया अनुप्रयोग में अर्थात गाना सुनने और मूवी देखने के लिए भी इस का उपयोग किया जाता था। साथ साथ आप इसमें अपने ऑफिस के डॉक्यूमेंट भी सेव रख सकते थे। जिस तरह से आज के जमाने में पेन ड्राइव्स यूज़ में ली जाती है। ठीक उसी तरह उस जमाने में सीडी यूज़ में ली जाती थी। दोस्तों अब हम डीवीडी के प्रकार के बारे में समझेंगे के डीवीडी कितने प्रकार की पाई जाती है।

डीवीडी ( DVD ) के प्रकार


दोस्तो डीवीडी कई प्रकार के पाए जाते हैं, जिनके बारे में मैं अलग-अलग आपको समझाता हूं, स्टेप बाय स्टेप।

DVD-ROM ( डीवीडी रोम ) 


दोस्तों dvd-rom मैं जो रोम शब्द यूज किया गया है, इस रोम का पहले फुल फॉर्म हम जान लेते हैं। रोम शब्द का फुल फॉर्म रीड ओनली मेमोरी ( Read only memory ) होता है। मतलब के एक ऐसा मेमोरी जिसको खाली रीड किया जा सकता है, अर्थात इसे सिर्फ पढ़ा जा सकता है।
तो रोम से आप समझ ही गए होंगे, कि dvd-rom का क्या मतलब होता है। अर्थात एक ऐसा डीवीडी जिस डीवीडी को खाली हम रीड कर सकते हैं, अर्थात उसको पढ़ सकते हैं, उसके अंदर कुछ स्टोर नहीं कर सकते हैं।

डीवीडी माइनस आर डीवीडी प्लस आर ( DVD-R and DVD+R )


दोस्तों यह दोनों ही प्रकार के डीवीडी को हम एक ही बार उसमें कोई डाटा स्टोर कर सकते हैं, अर्थात इन दोनों प्रकार के डीवीडी में हम सिर्फ एक ही बार डाटा को मिटा कर उसमें नया डाटा डाल सकते हैं, नया इंफॉर्मेशन डाल सकते हैं।
उसके बाद यह  DVD, डीवीडी रोम बन जाती है, अर्थात उसके बाद हम इसको खाली रीड कर सकते हैं, इसमें कुछ राइट नहीं कर सकते।

DVD + RW

दोस्तों यह डीवीडी काफी ज्यादा लोकप्रिय डीवीडी  है, और सबसे ज्यादा महंगा डीवीडी यही आता है। क्योंकि इस डीवीडी को आप बार-बार रीड भी कर सकते है। और बार-बार राइट भी कर सकते हैं। अर्थात इसके अंदर के डाटा को आप बार-बार देख भी सकते हैं, और इसके अंदर के डाटा को डिलीट करके वापस इसमें नया डाटा डाल भी सकते हैं। यह एक पेनड्राइव की तरह कार्य भी करता है। इसीलिए ही या सबसे ज्यादा फेमस है। 
1:42 PM

know ram speed | रैम की फ्रिकवेंसी कैसे पता करें

know ram speed ( रैम की फ्रिकवेंसी कैसे पता करें )

know ram speed रैम की फ्रिकवेंसी कैसे पता करें
ram speed in hindi

know ram speed, know ram speed, know ram speed, know ram speed.
दोस्तों रैम की फ्रीक्वेंसी ( speed ) पता करने के लिए मैं आपको ऊपर एक टेबल दे रहा हूं, और उसी टेबल के हिसाब से हम आपको बताएंगे कि, किस रैम की क्या फ्रीक्वेंसी है। अगर रैम के ऊपर फ्रीक्वेंसी ( speed ) लिखा हुआ नहीं है, कि वह कितने मेगाहर्ट्ज का है, तो आप इस टेबल को फॉलो करते हुए यह पता लगा सकते हैं, कि आपका रैम कितने फ्रीक्वेंसी का है। वह कितने वोल्टेज का है। और उसमें उसका मॉडल नंबर क्या है। और भी काफी कुछ आप पता लगा सकते हैं, तो चलिए बिना वक़्त गवाए शुरू कर लेते हैं।

तो दोस्तों मान लीजिए, आपके पास एक ऐसा रैम है, जिस रैम के ऊपर कोई भी फ्रीक्वेंसी ( speed ) नहीं लिखी हुई है। और अगर लिखी हुई भी है, तो आपको पता नहीं चल रहा है, कि उन नंबर्स में से कौन-सा फ्रीक्वेंसी है। जैसा कि मैं आपको एक इमेज दे दूंगा, उसी में से आप पता लगा सकते हैं। और एक टेबल भी दिखाऊंगा आपको, जिसमें के सभी के फ्रीक्वेंसी लिखी हुई होगी।

पर दोस्तों आगे कुछ बताने से पहले आपको एक बात बता देना चाहता हूं, कि मैंने जो यहां पर टेबल बनाया है। उस टेबल में जो भी फ्रीक्वेंसी लिखी हुई है, वह काफी टाइम पहले लिखी गई थी, और आज के जमाने में जो नए रैम आ रहे हैं, उनमें और इस टेबल में थोड़ा बहुत फर्क हो सकता है। पर आपको लगभग लगभग सेम फ्रीक्वेंसी के ही मिल जाएंगे। कुछ एक राम होते हैं, जिनके अंदर  फ्रिकवेंसी बदल जाती है। तो इसके लिए आप हमें दोषी  मत बनाइए गा। तो चलिए अब हम रैम की फ्रीक्वेंसी का पता लगाते हैं, और कितना वोल्टेज का रैम है, वह भी पता लगाते हैं।

रैम की फ्रीक्वेंसी और वोल्टेज का पता कैसे लगाएं ? ( know ram speed )

laptop ram
रैम की फ्रीक्वेंसी और वोल्टेज का पता कैसे लगाएं ?

know ram speed, know ram speed,
तो दोस्तों आप इमेज में एक लैपटॉप का रैम देख पा रहे होंगे। इस लैपटॉप के रैम में उसकी कैपेसिटी साफ तौर पर बता दी गई है। कि यह रैम 4GB का है। पर इसमें बाकी सारे नंबर लिखे हुए हैं, और आपको सही से कुछ भी पता नहीं चल रहा होगा। कि रैम की फ्रीक्वेंसी ( speed ) क्या है, और यह रैम कितने वोल्टेज का है। और यह रैम कितने वोल्टेज पर कार्य करती है।  और यह रैम DDR1 RAM, DDR2 RAM, DDR3 Ram, ddr4 Ram,है।  यह भी आप को पता नहीं चल रहा होगा। लैपटॉप के रैम में अक्सर ऐसा होता है,तो चलिए अब हम इसको समझते है,की यह कौन सा रैम है।

यह कौन सा रैम है ?

दोस्तों रैम के ऊपर आपको दिखाई दे रहा होगा, इसमें pc3 लिखा हुआ है, और उसके आगे 12800 लिखा हुआ है। तो इन दोनों चीजों की मदद से ही हम अपने रैम का सब कुछ पता करेंगे। तो आप टेबल में देख सकते हैं, कि pc3 कहां लिखा हुआ है। यह रैम का  मॉड्यूल है।

तो अब देख सकते हैं, कि यह ddr3 राम के अंदर चौथे नंबर ब्लॉक पर लिखा हुआ है। pc3 , 12800 लिखा हुआ है, और आप टेबल में देख सकते हैं कि इसके ठीक आगे इसकी फ्रिकवेंसी लिखी हुई है। जो कि 800 मेगाहर्ट्ज की है, और इसका ट्रांसफर रेट 1600 एमटीएस है। और ठीक इसके आगे आपको दिखाई दे रहा होगा कि यह 1.5 वोल्ट का है। इसका मतलब कि यह ddr3 रैम है, और सबसे पहले नंबर पर जो लिखा हुआ है, DDR3 -1600 यह उस में लगी chip  अर्थात उस में लगी हुई आइ सी ( IC ) का नंबर है। तो दोस्तों इस प्रकार से आप किसी भी rem को आईडेंटिफाई ( Identify ) कर सकते हैं। और पता लगा सकते हैं, कि आपके रैम का वोल्टेज क्या है। उसका ट्रांसफर रेट क्या है। मेमोरी क्लॉक स्पीड क्या है। IO बस क्लॉक की स्पीड ( speed ) क्या है, और उसमें कौन सी आई सी लगी हुई है। इन सब चीजों के बारे में आप आसानी से पता लगा सकते हैं, चाहे आपके पास लैपटॉप का रैम हो या डेक्सटॉप का रैम ( dextop ram ) हो।

Note :-

तो दोस्तों आपको हमारा यह पोस्ट कैसा लगा। हमें कमेंट करके जरूर बताइए और साथ ही साथ अगर आपको वीडियो देखने का शौक है, तो आप हमारे यूट्यूब चैनल ट्रिक्स एंड लर्न ( Tricks and learn ) में जाकर रैम के बारे में और भी अच्छे से समझ सकते हैं। इसके ऊपर मैंने एक वीडियो बना रखा है, तो चलिए आज की पोस्ट में बस इतना ही था। तो अब चलते हैं, और मिलेंगे नेक्स्ट पोस्ट पर। 
12:09 AM

how to find the right ram | sahee ram ka kaise pata kare

how to find the right ram ( sahee ram ka kaise pata kare )

सही रैम का कैसे पता करें
how to find the right ram ( sahee ram ka kaise pata kare )
how to find the right ram
sahee ram ka kaise pata kare

दोस्तों आज के इस पोस्ट में हम यह जानेंगे कि, आपके कंप्यूटर के मदरबोर्ड में कौन सा रैम लगेगा। और किस तरह से आप अपने कंप्यूटर के रैम को पहचान सकते हैं। उसको किस तरह से पता कर सकते हैं। इन सभी बातों के बारे में आज के इस पोस्ट में हम जानेंगे। तो चलिए बिना वक़्त गवाए शुरू कर लेते हैं, और अगर दोस्तों आपने हमारा पिछला पोस्ट नहीं पढ़ा है, तो आप जरूर पढ़ लीजिएगा। जिससे कि आपको इनके बारे में और भी ज्यादा सीखने को मिलेगा। इसके पहले भी हमने रैम के ऊपर पांच पोस्ट लिख रखा है। तो चलिए अब आज के टॉपिक पर। 

अभी कौन-कौन से रैम आपको देखने को मिलेंगे ?


दोस्तों आज के जमाने में जो सबसे ज्यादा रैम चलते हैं, उन रैम में सबसे ज्यादा जो पुराना है, वह ddr1 है। उसके बाद DDR2 आता है। उसके बाद ddr3 आता है। और उसके बाद ddr4 आता है। 

दोस्तो ddr3 और ddr4 अभी लेटेस्ट में चल रहा है। ddr1 के रैम आपको बहुत कम देखने को मिलेंगे। DDR2 के रैम आपको देखने को मिल जाएंगे, पर उतना ज्यादा नहीं, और ddr3 रैम आपको सबसे ज्यादा देखने को मिलेगा। ddr4 के मुकाबले से भी ज्यादा, क्योंकि ddr4 अभी लेटेस्ट में आया हुआ है, और ddr3 काफी पहले से है, और ज्यादातर लोगों के पास ddr3 रैम ही मिलेगा। क्योंकि ddr3 कंप्यूटर हाल ही के कुछ सालों में ही खरीदे हुए हैं, इसीलिए आपको सबसे ज्यादा ddr3 रैम ही मिलेगा। तो यह सभी रैम आपको देखने को मिलेंगे। और अगर आपकी किस्मत बहुत ही ज्यादा अच्छी रही, तो आपको SD रैम भी देखने को मिल जाएगा। जिसे टैक्टिकल लैंग्वेज में SDR रैम कहा जाता है। 

रैम की पहचान कैसे करेंगे ? ( how to find the right ram )


रैम की पहचान ही सबसे बड़ा मुद्दा है, आज के टॉपिक का। अगर आपके पास कोई कंप्यूटर ऐसा आता है, या अगर आपके खुद के पास कोई कंप्यूटर है, उसमें अगर आपको यह पता करना है, कि उस कंप्यूटर के मदरबोर्ड में कौन सा रैम लगेगा। तो आपको बता दूं, कि कंप्यूटर के रैम स्लॉट जो होता है, जहां पर रैम फिट होता है, उस रैम स्लॉट में एक कट दिया हुआ रहता है। उस कट के पास ही आपको रैम का वोल्टेज देखने को मिल जाएगा। कि वह रैम कितने वोल्टेज का है। तो जब आप स्लॉट की तरफ ध्यान से देखेंगे, तो उसमें वोल्टेज लिखा हुआ आपको मिल जाएगा। और उसी वोल्टेज को देखकर आप रैम को आईडेंटिफाई कर सकते हैं, कि आपके कंप्यूटर के मदरबोर्ड में कौन सा रैम लगेगा। 

आपके कंप्यूटर के मदरबोर्ड में कौन सा रैम लगेगा ?


  1. दोस्तों अगर आपके कंप्यूटर के मदरबोर्ड के रैम सॉकेट में 3.3 वोल्ट लिखा हुआ है, तो आपके रैम सॉकेट में SD  रैम लगेगा। 
  2. अगर रैम सॉकेट में 2.5 वोल्ट लिखा हुआ है, तो ddr1 रैम लगेगा। 
  3. अगर आपके मदरबोर्ड के राम सॉकेट में 1.8 वोल्ट लिखा हुआ है, तो DDR2 रैम लगेगा। 
  4. आपके मदरबोर्ड के रैम सॉकेट में 1.5 वोल्ट लिखा हुआ है, तो ddr3 राम लगेगा। 
  5. अगर आपके कंप्यूटर के मदरबोर्ड के रैम सॉकेट में 1.2 वोल्ट लिखा हुआ है, तो आपके रैम सॉकेट में ddr4 राम लगेगा। 

रैम सॉकेट के ऊपर लिखा हुआ वोल्टेज पढ़ कर के आप यह पता लगा सकते हैं, कि आपके कंप्यूटर में कौन सा रैम लगेगा। 
दोस्तों यही सबसे अच्छा तरीका है, रैम सॉकेट में कौन सा रैम लगेगा, और रैम की पहचान क्या होती है, उसको सही से जस्टिफाई करने के लिए। 

NOTE :-

मुझे आशा है, कि आप को हमारा यह पोस्ट अच्छे से समझ में आया होगा। और मैं जो आपको बताना चाह रहा था, और आप जो जानना चाह रहे थे। आपको पता चल गया होगा। अगर आपको हमारा यह पोस्ट पसंद आए, तो हमें कमेंट करना मत भूलियेगा, और अगर आप की तरफ से कोई राय है, तो हमें जरूर बताइए। और अगर आपको कुछ पूछना है, हमसे। तो आप हमसे बेझिझक पूछ सकते हैं। हम आपके सवालों का जवाब देने की पूरी तरह से कोशिश करेंगे। तो चलिए अभी के लिए बस इतना ही। अब मिलेंगे नेक्स्ट पोस्ट पर। 
how to find the right ram ( sahee ram ka kaise pata kare )

Friday, September 20, 2019

11:17 PM

ram upgrade before and after

ram upgrade before and after ( रैम अपग्रेड होने से पहले और अपग्रेड होने के बाद )

दोस्तों आज के इस पोस्ट में हम रैम अपग्रेड होने से पहले और अपग्रेड होने के बाद (ram upgrade before and after ) क्या प्रॉब्लम आती है। और उनको किस तरह से ठीक किया जा सकता है, उन सब चीजों के बारे में विस्तार से जानेंगे। और रैम से जुड़े कुछ अन्य बातें भी जानेंगे। तो चलिए बिना वक्त गवाए स्टार्ट कर लेते हैं, हमारा आज का यह पोस्ट।
ram upgrade before and after
रैम अपग्रेड होने से पहले और अपग्रेड होने के बाद

रैम अपग्रेड होने से पहले ( ram upgrade before )

दोस्तों सबसे पहले हम यह जान लेते हैं, कि रैम को अपग्रेड ( Upgrade ) करने से पहले आप एक बात अपने दिमाग में क्लियर कर लीजिए। कि आप रैम को अपग्रेड क्यों करना चाहते हैं, क्या आपका कंप्यूटर स्लो चल रहा है। और अगर आपका कंप्यूटर स्लो चल रहा है, तो किसी ने आपको आईडिया दिया होगा, या किसी ने आपको यह कहा होगा, कि आप अपने कंप्यूटर का रैम बढ़ा लीजिए। आपका कंप्यूटर पहले से फास्ट काम करने लगेगा। पर दोस्तों मैं आपको बता दूं, कि रैम बढ़ा लेने से कंप्यूटर पहले से फास्ट काम नहीं करने वाला है। वह पहले जितना स्पीड से काम कर रहा था। अपग्रेड होने के बाद भी उतना ही स्पीड से काम करेगा। इसमें थोड़ा बहुत फर्क जरूर पड़ जाता है।

ज्यादा रैम की जरूरत कब पड़ती है ?


जैसे कि अगर आपका फोटोशॉप का काम है, और आप कोरल ड्रॉ वगैरह भी यूज करते होंगे। तो आपको अगर बहुत बड़े पोस्टर बनाने हो, जैसे कि एक ही पोस्टर में 50 या 60 फोटो एक साथ एडिट करने हो, और उसका एक ही इमेज बनाना हो। अर्थात बहुत बड़ा पोस्टर बनाना हो, और वह भी high-resolution में। तब आपको ज्यादा रैम की जरूरत पड़ती है।

क्योंकि अगर आपके कंप्यूटर का रैम ही 1GB होगा, और आपके फोटो की साइज या वीडियो की साइज 1GB से ज्यादा बढ़ने लगेगा, तो आपका कंप्यूटर हैंग होने लगेगा। जैसे-जैसे फाइल की साइज बढ़ती रहेगी, वैसे वैसे आपका कंप्यूटर हैंग होने लगेगा। इसीलिए उस पोजीशन पर आप रैम बढ़ा लेंगे, तो वह काम करना थोड़ा आसान हो जाएगा, और आपके कंप्यूटर के हैंग होने की समस्या लगभग ठीक हो जाएगी। और दोस्तों अगर आपका कंप्यूटर हैंग हो रहा है, तो सबसे पहले अपने कंप्यूटर को फॉर्मेट करके देखिए। क्योंकि कई बार वायरस की वजह से भी आपका कंप्यूटर हैंग होने लगता है। उसमें आपके रैम का कोई रोल नहीं होता है।

और हमारे कंप्यूटर के हैंग होने का एक और बहुत बड़ा वजह यह होता है, कि अगर आपके कंप्यूटर के हार्ड डिक्स अगर फुल होने लगता है, और जगह कम रहती है, तो भी आपका कंप्यूटर हैंग होने लगता है। तो उस पोजीशन में आपको अपना हार्ड ड्राइव या तो क्लीन करना होगा उसमें से कुछ डाटा डिलीट करने होंगे, या आपके हार्ड डिस्क कैपेसिटी को बढ़ाना होगा। तब जाकर आपका कंप्यूटर आसानी से चलेगा, और हैंग की समस्या कम हो जाएगी। तो दोस्तों यह कुछ कारण थे, हमारे कंप्यूटर के हैंग होने का।

रैम के अपग्रेड होने के बाद के प्रॉब्लम ( problem )


दोस्तों अब मान लीजिए कि, आपने अपने कंप्यूटर का रैम अपग्रेड कर लिया है। अब उसके बाद क्या क्या प्रॉब्लम आती ,है उसके बारे में बात करते हैं।

पहला प्रॉब्लम


दोस्तों मान लीजिए, कि आपने अपने कंप्यूटर को अपग्रेड करने के लिए कोई रैम खरीदा है, और आपके कंप्यूटर में 2GB का राम पहले से है, और बाद में 2GB का रैम और खरीद लिया है। अब दूसरा जो 2GB का रैम है, उसको आपने अपने कंप्यूटर में लगाया, तो आपके कंप्यूटर का डिस्प्ले आना बंद हो गया।

मतलब के आपके कंप्यूटर का डिस्प्ले अब नहीं आ रहा है। कंप्यूटर का डिस्प्ले में कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा है। फिर आप उस राम को वापस निकालते हैं, तो आपका डिस्प्ले आ जाता है, और सही से काम करने लग जाता है। और वापस लगाते ही, वापस कंप्यूटर डिस्प्ले चला जाता है। दोस्तों ऐसा क्यों होता है, उसके बारे में आपको बता देता हूं।

कंप्यूटर का डिस्प्ले ना आने का कारण ( ram upgrade before and after)


दोस्तों आपकी कंप्यूटर का डिस्प्ले इसलिए नहीं आ रहा था, क्योंकि जो आपका रैम है, वह उसकी फ्रिकवेंसी तथा जिस रैम को आप ने खरीदा है, उस रैम की फ्रीक्वेंसी दोनों आपस में मैच नहीं कर रही है। उसकी कॉन्फ़िगरेशन ( configuration ) सारे मैच नहीं कर रहे हैं। इसीलिए ही आपका कंप्यूटर डिस्पले नहीं दे रहा है। तो उसको ठीक करने के लिए सबसे पहले, आप अपने रैम का फ्रीक्वेंसी मैच  कीजिए। फ्रीक्वेंसी से हमारा मतलब यह है, कि आपका रैम कितने मेगाहर्ट्ज का है। वह पहले पता कीजिए। उसके बाद सेम फ्रीक्वेंसी का ही रैम खरीदीए। फ्रिकवेंसी मैच होने के बाद आपका कंप्यूटर बिल्कुल अच्छे से काम करने लगेगा, और आप बड़े से बड़ा सॉफ्टवेयर इसमें इंस्टॉल कर पाएंगे। और बड़े से बड़ा फोटो आप एडिट कर पाएंगे। उस रैम के मुताबिक।

दूसरा प्रॉब्लम 


दोस्तों दूसरा प्रॉब्लम यह है, कि मान लीजिए आपने अपना कंप्यूटर का रैम अपग्रेड कर लिया है। अब अपग्रेड करने के बाद आपका कंप्यूटर पहले से भी स्लो चल रहा है, या आप काफी देर काम कर रहे हैं, और स्क्रीन में ब्लू कलर का एरर आ जाता है, तो अब इसको ठीक कैसे करें। इसको ठीक करने के लिए भी आपको रैम का फ्रीक्वेंसी वगैरह सब कुछ मैच करवाना होगा। उसके बाद ही आपका कंप्यूटर सही से वर्क करेगा। और अगर फिर भी स्क्रीन पर एरर आ रहा है, तो आप का रैम खराब हो सकता है। उस पोजीशन में आप रैम चेंज कर के देखिए। आप का प्रॉब्लम ठीक हो जायगा।

NOTE :-

इसलिए दोस्तों आप जब भी अपने कंप्यूटर का राम अपग्रेड करना चाहते हो, तो सबसे पहले रैम की फ्रीक्वेंसी मैच कीजिए। उसके बाद ही राम को खरीदे।

तो दोस्तों अब तक आपको समझ में आ गया होगा, कि रैम को अपग्रेड करने से पहले और अपग्रेड करने के बाद किस तरह का प्रॉब्लम आते हैं। और उन प्रॉब्लम का क्या सलूशन होता है। हमारे आज की पोस्ट में बस इतना ही था। अगर आपको हमारा यह पोस्ट पसंद आया हो, तो हमें कमेंट करके जरूर बताइए। तो चलिए अब चलते हैं, और मिलेंगे नेक्स्ट पोस्ट पर। 

Wednesday, September 18, 2019

9:37 PM

ram kya hota he | what is the working of ram

ram kya hota he ( रैम क्या होता है ) what is the working of ram

what is the working of ram
ram kya hota he

दोस्तों आज के इस पोस्ट में हम दो विषय पर बात करेंगे। एक रैम क्या होता है। और दूसरा के रैम का क्या कार्य है। और साथ ही साथ इनके बारे में हम थोड़ा विस्तार से जानेंगे। और अगर आपने हमारा पिछला पोस्ट नहीं पढ़ा है, तो प्लीज हमारा पिछला पोस्ट जरूर पढ़ लीजिए। दोस्तों रैम के ऊपर मैंने इससे पहले चार पोस्ट और लिख रखा है, आप उनको भी जरूर पढ़ियेगा। क्योंकि जितना ज्यादा पढ़ेंगे, उतना ज्यादा सीखेंगे। और मैं आपको यह बता देना चाहता हूं, कि किसी भी एक विषय में, एक पोस्ट में ही सब कुछ नहीं लिखा जा सकता है। इसीलिए मुझे रैम के ऊपर इतने सारे भागों में पोस्ट लिखना पड़ रहा है। तो आप की असुविधा के लिए मुझै माफ़ करना।  पर दोस्तों आप हमारे यह सभी पोस्ट जरूर पढ़ें। तो चलिए अब स्टार्ट करते हैं, आज का टॉपिक। 

रैम क्या होता है ?


 दोस्तों सामान्यतः लोग जानते हैं, कि रैम कंप्यूटर की स्पीड को बढ़ाता है। पर यह बिल्कुल ही गलत है। क्योंकि अगर रैम कंप्यूटर की स्पीड को बढ़ाता है, तो लोग भारी से भारी प्रोसेसर नहीं खरीदते, महंगे से महंगे मदरबोर्ड नहीं खरीदते। 

वह खाली रैम बढ़ाते हैं, और कंप्यूटर की स्पीड बढ़ जाती। यह सोचने वाली बात है, कि ऐसी सोच लोग रखते क्यों हैं, क्योंकि अगर वह खुद का दिमाग अगर लगाते हैं, और सोचते हैं, कि क्या रैम कंप्यूटर की स्पीड बढ़ा सकता है, और अगर रैम कंप्यूटर की स्पीड बढ़ा देता है,  तो किसी को मदरबोर्ड महंगा वाला लेने की कोई जरूरत ही नहीं थी। और प्रोसेसर भी महंगे वाले लेने की कोई जरूरत नहीं थी। तो कुल मिलाकर आप बात को समझ गए होंगे, कि रैम कंप्यूटर की स्पीड को नहीं बढ़ाता है। बस थोड़ा बहुत मदद कर देता है। 

रैम ( RAM ) का Full  Form ( what is the working of ram)


दोस्तों रैम ( RAM ) का Full  Form रेण्डम एक्सेस मेमोरी ( Random access memory ) है।
ram full form
ram full form

रैम क्या होता है ( ram kya hota he ) ?


दोस्तों अगर मैं आपको सही से बताऊ, कि रैम क्या होता है, तो वह एक मेमोरी होता है। और हम ऐसा कह सकते हैं, कि यह कंप्यूटर का सबसे तेज मेमोरी होता है। जो कि बहुत ही ज्यादा स्पीड से काम करता है। हमारे आम मेमोरी के मुकाबले चाहे वह पेनड्राइव हो, आपके कंप्यूटर का हार्ड डिक्स हो, या आपके मोबाइल का मेमोरी कार्ड। कुछ भी हो। सबसे ज्यादा तेज रैम ही होता है, और इसको हम प्राइमरी मेमोरी भी कहते हैं। 

रैम का क्या कार्य हैं। 


दोस्तों आपको यह तो पता चल गया, कि रैम एक तरह का मेमोरी होता है। जो कि कंप्यूटर की सबसे तेज मेमोरी होती है। अब हम यह जानेंगे कि रैम का हमारे कंप्यूटर के अंदर क्या भूमिका होती है, और उसका क्या कार्य होता है। 

 रैम का कार्य


दोस्तों जब हम अपना कंप्यूटर स्टार्ट करते हैं, तो स्टार्ट होने से लेकर कंप्यूटर के बंद होने तक हम जो भी कार्य करते हैं, अपने कंप्यूटर में वह सारा कार्य कहीं ना कहीं तो, किसी ना किसी मेमोरी में तो चल रहा होगा। क्योंकि बिना मेमोरी के हवा में तो वह चल नहीं सकता। तो वह प्राइमरी मेमोरी मतलब के हमारे रैम के ऊपर चलता है। 

अब मान लीजिए कि, आप कोई ms-office का फाइल बना रहे हैं। और कुछ लिख रहे हैं। अब जो कुछ भी आप उस वक्त लिख रहे हो, वह सारा कार्य रैम में सेव होता रहता है, और जब हम उस कार्य को खत्म होने के बाद उस डॉक्यूमेंट को परमानेंट सेव करते हैं, तब वह रैम से हटकर हमारे कंप्यूटर के हार्ड डिक्स में सेव हो जाता है। तब जाकर वह परमानेंट सेव होता है। अगर आपने हार्ड डिक्स में सेव नहीं किया है, और लाइट चली गई है, या कंप्यूटर किसी भी वजह से बंद होता है, तो आपका सारा डाटा चला जाता है। क्योंकि वह सेव नहीं हो पाता है, और इसी कारण की वजह से ही हमारे रैम को टेंपरेरी मेमोरी भी कहा जाता है। मतलब के आपका वह कार्य सिर्फ उसी वक्त के लिए सेव होता है। अपने रैम में जब तक के आपका पूरा डाटा हार्ड डिक्स में सेव नहीं हो जाता। और पावर कट होते ही वह सारा डाटा रैम से डिलीट हो जाता है। इसीलिए ही पावर जाने के बाद हमें कोई भी चीज पुनः दिखाई नहीं देती। सिर्फ हार्ड डिक्स में जो सेव होता है, वही चीज हमें दिखाई देता है। 

रैम किस प्रकार से कार्य करता है ?


दोस्तों जब भी हम अपने कंप्यूटर में कार्य करते हैं, कुछ भी लिखते हैं। तो जब भी हम कोई भी वर्ड लिखते हैं, तब वह सीधा रैम में जाता है। और रैम उस डाटा को सीधा प्रोसेसर को फॉरवर्ड कर देती है, अर्थात भेज देता है। और प्रोसेसर उसको अच्छी तरह से समझ कर, उसका हल निकाल कर, वापस रैम को प्रोवाइड कर देता है। और रैम उसको अपने निर्धारित स्थान तक पहुंचा देती है। और फिर वह हमें उसका जो परिणाम होता है, वह हमें दिखाई देता है। तो इस प्रकार रैम हमारे कंप्यूटर के अंदर कार्य करता है। 

दोस्तों रैम का एक और कार्य भी होता है, के रैम एक ही वक्त में कई सारे एप्लीकेशन को अच्छे ढंग से चलाने का कार्य भी करता है। और इसीलिए शायद लोग कहते हैं, कि रैम बढ़ाने से कंप्यूटर की स्पीड बढ़ जाती है। 

 रैम कम होने से कंप्यूटर हैंग क्यों होता है ?


दोस्तों यह सवाल अक्सर लोगों के दिमाग में घूमता रहता है, कि रैम कम होने से कंप्यूटर हैंग क्यों होता है ? क्योंकि कई लोग यह तो बता देते हैं, कि रैम कम होने से आपका कंप्यूटर स्लो चलेगा, और रैम बढ़ा लेने से स्पीड में चलेगा। पर आखिर उसके स्पीड में चलने का कारण क्या होता है? उस  बात को अब हम जानेंगे। 

दोस्तों अब आप मान लीजिए, कि आपके पास एक 1GB का रैम है, और आप उस 1GB के रैम के ऊपर अपने कंप्यूटर में, एक साथ कई सारे एप्लीकेशन चला रहे हैं। जो कि काफी हैवी ड्यूटी के हैं। अर्थात मान लीजिए आप एक ही कंप्यूटर में फोटोशॉप का कार्य कर रहे हैं, उसके साथ ही वीडियो एडिटिंग का कार्य कर रहे हैं, उसके साथ ही गाना  सुन रहे हैं। अब आपको नॉर्मल ही पता होना चाहिए कि एक फोटो एडिटिंग करने के लिए आपको कितना स्पेस चाहिए होता है। 
तो अगर फोटो का साइज अगर बड़ा होगा, और रेगुलेशन बड़ा होगा। तो आपका वह 1GB रैम पूरी तरह से एक ही, उस फोटो शॉप के अंदर ही यूज हो जाएगा। और दूसरा कोई कार्य करने के लिए आपको स्पेस नहीं मिलेगा। और उसी वक्त आप अगर गाना सुनने लग जाए, तो वह ओवर लोड हो जाएगा, और आपका कंप्यूटर हैंग हो जाएगा। 

उदाहरण :-

क्योंकि एक रास्ते से अगर एक गाड़ी जा सकती है, तो वहां पर आप तीन गाड़ियां एक साथ चलाओगे, तो वहां पर जाम लग जाएगा। और आप जाम में फस जाओगे। उसी प्रकार रैम में भी होता है, कि अगर उसकी कैपेसिटी कम होती है, और आप उस रैम की केपेसिटी से ज्यादा उसमें लोड देते हैं, तो वह हैंग होने लग जाता है। 

पर दोस्तों रैम खाली स्पीड नहीं बढ़ाता है, रैम के साथ साथ का भी अच्छा होना जरूरी है। नहीं तो आप ने एक पीसी में 16GB रैम लगा दिया। और प्रोसेसर आपका बहुत पुराना है, और ज्यादा लोड लेने योग्य नहीं है, तो भी आपका कंप्यूटर हैंग होगा। तो इस बात का ध्यान रखें। और आप जहां तक कोशिश करें कि रैम को बढ़ाने के बजाए, अपने बाकी के जो कंप्यूटर के भाग है, उनको और अच्छा बनाने की कोशिश कीजिए। और अच्छे से अच्छा लेने की कोशिश कीजिए। रैम तो सबसे लास्ट ऑप्शन होता है, और सबसे पहले आप अपने कंप्यूटर का मदरबोर्ड और प्रोसेसर अच्छा लगाये है। जिससे कि आपको बेहतर रिजल्ट मिलेगा। और इस चीज के ऊपर मैं अलग से एक पोस्ट लिखने वाला हूं, कि आपका कंप्यूटर को कितने स्पीड के लिए कितना उसका कॉन्फ़िगरेशन होना चाहिए। इसके ऊपर मैं अलग से पोस्ट लिखने वाला हूं। 

तो दोस्तों आज के इस पोस्ट में बस इतना ही था। अगर आपको हमारे यह पोस्ट पसंद आए, तो प्लीज  हमें कमेंट करके जरूर बताएं। तो अब हम चलते हैं, और फिर मिलेंगे नेक्स्ट पोस्ट पर। 
4:33 PM

Ram full details in hindi

Ram full details in hindi

दोस्तों आज के इस पोस्ट में हम यह जानेंगे की रैम कितने प्रकार के पाए जाते हैं। और उनकी क्या स्पीड होती है। और साथ ही साथ यह जानेंगे, कि उनकी कैपेसिटी क्या है। वह किस सन में बना था। इन सब चीजों के बारे में आज के इस पोस्ट में हम विस्तार से जानेंगे। मुख्यतः जो हाल ही में कुछ सालों में आए हैं, उनके बारे में इस पोस्ट में हम चर्चा करेंगे। बाकी जो पुराने रैम थे, उनके बारे में हमने पीछे पोस्ट लिख दिया है। तो अगर आपको पुराने रैम के बारे में जानना है, तो आप पीछे वाली पोस्ट को पढ़ लीजिए। 
रैम ( RAM ) का Full  Form 

दोस्तों रैम ( RAM ) का Full  Form रेण्डम एक्सेस मेमोरी ( Random access memory ) है।
सामान्यतः आज के जमाने में हर कोई इस बात को जनता है , पर आज के इस पोस्ट में हम रैम को और भी ज्यादा अच्छी तरह से जानेंगे और उस पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

रैम का क्या कार्य है? ( What is the function of RAM? )

सामान्य टूर पैर लोग यह जानते है, कि रैम कंप्यूटर की स्पीड को बढ़ता है।  पर यह बात पूरी तरह से सही नहीं है। अगर आप को रेम के बारे में शार्ट में समझाऊ तो वह कुछ इस प्रकार होगा।
रैम एक टेम्प्रेरी मेमोरी है। दोस्तों हम कंप्यूटर में जो भी कार्य कर रहे होते है, वो चाहे आप कोई भी ऍप्लीकेशन चला रहे हो या कोई गाना सुन रहे हो या कोई मूवी देख रहे हो या कोई डॉक्यूमेंट बना रहे हो, वह सारा काम उस वक़्त जिस जगह save रहता है, वह जगह रेम होती है। और आप के कंप्यूटर के बंन्द होते ही या उस सॉफ्टवेयर के बंन्द होते ही वह सारा इनफार्मेशन रेम से डिलीट हो जाता है, और रैम खली हो जाता है।
अगर आप के द्वारा किए गए कार्य को आप अपने कंप्यूटर के हार्डडिस्क में सेव नहीं करते है, तो आप के द्वारा किया गया सारा कार्य डिलीट हो जायेगा। क्योकि वह सारा कार्य हार्डडिस्क में सेव होने से पहले रेम में ही चलता रहता है, इसलिए रैम को टेम्प्रेरी मेमोरी कहा जाता है।
दोस्तों रेम के कार्य के बारे में, हम एक अलग से पोस्ट लिखने वाले है, जिस में रैम का क्या कार्य है? उस के बारे में विस्तार से बताया जायेगा। और उस का लिंक भी आप को बता दिया जायेगा।

अब हम आज के जमाने में काम में आ रहे रैम के बारे में जानेंगे।
RAM Type
RAM Types


DDR 1 RAM ( डी डी आर 1 रैम )


दोस्तों पिछली पोस्ट में हमने कई सारे रैम के बारे में जाना था। और उन सभी राम के बाद, जब ddr1 रैम का आविष्कार हुआ। तब असल में जो हमारे कंप्यूटर में काम करने की स्पीड है, उसको गति मिली। वह इसी रैम के आने के बाद ही हुई।

अगर सीधे शब्दों में आपको बताऊं तो, जिस प्रकार पहले के जमाने में साइकल चलते थे, और जब टू व्हीलर और फोर व्हीलर आए। उसके बाद से हमारे ट्रांसपोर्टेशन का नजरिया ही बदल गया, और उसका बहुत बड़ा प्रभाव यातायात पर पड़ा। और सब कुछ तेजी से बदलने लगा।

उसी प्रकार जब ddr1 रैम आई, तो उसके बाद से बहुत ही स्पीड से हमारे कंप्यूटर में कार्य होने लगे, और इनकी कैपेसिटी भी बहुत ज्यादा थी। यह रैम 256 MB से लेकर 2GB तक के आते थे। और इनकी स्पीड 100 मेगा हर्ट्ज से ले कर 400 मेगा  हार्ट्स तक थी।

दोस्तों यह रैम 2003 से लेकर 2005 के बीच में आई है, और यह उस जमाने में काफी ज्यादा महंगा मिलता था। और यह रैम 2.5 voltage पर कार्य करता था।

DDR2 RAM ( DDR2 रैम )


दोस्तों यह रैम पहले वाले रैम से भी बहुत ही ज्यादा अच्छा था। क्योंकि यह सीधी सी बात है, कि जिस प्रकार कोई टेक्नोलॉजी अपग्रेड होती है, आगे बढ़ती है। तो उसकी पावर भी बढ़ जाती है, और बिजली की खपत भी कम हो जाती है। उसी प्रकार यह रैम 200 मेगाहर्ट्ज से लेकर 800 मेगाहर्ट्ज तक के आते थे। और ज्यादातर यह रैम 256mb से लेकर 4GB तक के आते थे। और यह रैम  2007 से 2009 के बीच में आया था। और जो रैम में Pins होती थी, उन Pin की संख्या भी बढ़ने लगी। जैसे जैसे रैम अपग्रेड होता गया। वैसे-वैसे पिन भी बढ़ते गए। DDR2 में ज्यादातर 240 पिन के रैम आते थे।

डीडीआर 3 रैम ( DDR 3 RAM )


दोस्तों ddr3 रैम में भी 240 पिन ही आते थे, और उससे ज्यादा के भी कुछ एक मॉडल में आते थे। दोस्तो ddr3 रैम आज के जमाने में सबसे ज्यादा यूज में लिया जाने वाला रैम है, और इसकी पापुलैरिटी भी बहुत ज्यादा है। यह रैम 400 मेगाहर्ट्ज से लेकर 1600 मेगाहर्ट्ज तक के आते हैं। और कुछ इनसे ज्यादा के भी आते हैं।

और इनकी कैपेसिटी भी 1GB से लेकर 8GB तक के आते हैं। और यह भी हो सकता है, कि जैसे-जैसे टेक्नोलॉजी आगे बढ़ती रहेगी। इसकी कैपेसिटी भी और ज्यादा बढ़ती रहेगी। मेरा मतलब के रैम ddr3 ही रहेगा। पर उसकी कैपेसिटी बढ़ जाएगी।

और यह रैम 1.5  वोल्टेज पर कार्य करती है। और इसके क्लॉक की स्पीड भी बहुत ज्यादा है।


 डीडीआर 4 रैम ( ddr4 Ram )


दोस्तों यह रैम 800 मेगाहर्ट्ज से लेकर 3200 मेगाहर्ट्ज तक के मिलते हैं। और इस रैम की कैपेसिटी 4GB से लेकर 32GB तक के मिल जाते हैं। और कुछ मामलों में यह रैम 64GB तक के आते हैं। यह लेटेस्ट में आया हुआ रैम है, जो कि अभी सबसे ज्यादा चल रहा है। और जो भी अभी के नए मदरबोर्ड आ रहे हैं, उन सभी मदरबोर्ड में ddr4 रैम ही आपको देखने को मिलेगा। और कुछ मदरबोर्ड में ddr3 रैम देखने को मिलेगा। इस रैम की शुरुआत लगभग 2012 में ही हो गई थी, पर आम लोगों तक इसकी पहुंच नहीं थी। पर अभी ddr4 रैम बड़ी आसानी से मार्केट में मिल जाता है।

दोस्तों ddr4 रैम 1.2 वोल्ट पर कार्य करता है। इससे आप यह जान सकते हैं, कि यह रैम कितना कम वोल्टेज लेता है, और कितने कम वोल्टेज की खपत होती है। और अभी भविष्य में ddr5 रैम भी आने वाला है, जो कि 1.1 वोल्ट का होगा।

NOTE :-

तो दोस्तों हमारा आज का यह पोस्ट इतना ही था। आपको हमारा यह पोस्ट कैसा लगा। हमें कमेंट करके जरूर बताइए। साथ ही साथ अगर आपको कोई प्रॉब्लम हो रही है, या किसी चीज के बारे में जानना है, तो आप हमें कमेंट में पूछ सकते हैं। हम आपकी सहायता करने की पूरी तरह से कोशिश करेंगे। तो चलिए अभी के लिए चलते हैं, और फिर मिलेंगे नेक्स्ट पोस्ट पर। 
11:58 AM

Sipp ram Simm ram and sd ram full detail in hindi | सिप रैम, सिम रैम और एस डी रैम पूर्ण विवरण

Sipp ram Simm ram and sd ram full detail in hindi ( सिप रैम, सिम रैम और एस डी रैम पूर्ण विवरण )

दोस्तों पिछली पोस्ट में हमने डीप रैम ( DIPP RAM ) के बारे में जाना था, और आज के इस पोस्ट में हम सिप रैम, सिम रैम और एस डी रैम ( SD RAM ) के बारे में जानेंगे, कि यह रैम कैसे थे और इनका क्या कार्य था। किस तरह के यह दिखते थे। इन सभी बातों के बारे में आज के इस पोस्ट में हम जानेंगे, और दोस्तों इस पोस्ट को स्टार्ट करने से पहले मैं आपको यह कर देना चाहता हूं, कि अगर आपने हमारा पिछला पोस्ट नहीं पड़ा है, जो कि रैम part 1 था और रैम part-2 था। इन दोनों पोस्ट को अगर नहीं पढ़ा है, तो प्लीज उन दोनों पोस्ट को पहले पढ़ ले, और फिर यह वाला पोस्ट पढ़े। जिससे कि आपको रैम के बारे में और अच्छे से समझ में आएगा।

सीप रैम ( SIPP RAM )

sipp memory slot and sipp memory
sipp memory slot and sipp memory

दोस्तों यह रैम 30 PIN  के आते थे। और इनकी कैपेसिटी 2MB ही थी। और इसकी स्पीड 10 मेगा हर्ट्ज थी। यह रैम 1986 को आया था। और यह Ram 286 motherboard में लगता था।

आप इमेज में भी देख सकते हैं, किस तरह के इसमें PIN  आती थी, और मदरबोर्ड में किस तरह से सेट किया जाता था। नीचे आपको एक फोटो दे रहा हूं आप आसानी से देख सकते हैं, और उसको समझ सकते हैं।

सिम रैम ( SIMM RAM )

Simm ram and simm ram slots
Simm ram and simm ram slots

दोस्तों जब यह रैम आया। तो  इसने रैम का पूरा इतिहास ही चेंज कर दिया, और अचानक से सब बदल गया। यह सब वैज्ञानिकों के मेहनत का ही नतीजा था जिसने कि हमारे काम करने की क्षमता को और भी बढ़ा दिया, और हम अब काफी स्पीड से काम कर सकते थे। यह रैम 30 PIN का आता था, तथा इसके कार्य करने की स्पीड 16 मेगाहर्ट्ज तक की थी, और हम इस रैम की कैपेसिटी को 256 kb से लेकर 4 MB तक की बढ़ा सकते थे। मेरा मतलब के 4MB तक इस रैम की कैपेसिटी थी।

यह रैम सबसे पहले 1988 के आसपास आया था, और इस रैम के लिए अलग से स्लॉट दिया गया था। जिसके अंदर इस रैम को लगाना पड़ता था। वैसे तो सीप रैम ( SIPP RAM ) के अंदर भी अलग से स्लॉट दिया हुआ था। पर वह स्लॉट ना होकर छेद छेद था। उन छेद के अंदर इस रैम को बिठाना पड़ता था। जो कि पूरी तरह से परफेक्ट नहीं था। पर सिम रैम ( SIMM RAM ) के आते ही सब कुछ चेंज हो गया और  रैम को बिठाने के लिए अलग से स्लॉट मिल गया।

सिम रैम ( SIMM RAM ) 72 pin

72 PIN Simm ram and simm ram slots
72 PIN Simm ram and simm ram slots

दोस्तों इस रैम के आते ही हमारे कार्य करने की क्षमता को डबल स्पीड मिली अर्थात हम अब पहले से 2 गुना ज्यादा स्पीड से कार्य कर सकते थे। इस रैम के कार्य करने की क्षमता 16 मेगाहर्ट्ज थी, और इसकी कैपेसिटी 8 MB तक की थी। जिससे कि हम कम समय में ज्यादा कार्य कर सकते थे। इसका फोटो भी अलग से आप देख सकते हैं। और इस रैम की जो PIN  आती थी। वह 72 PIN की होती थी। और यह रैम P1 मदरबोर्ड में आता था।

SD Ram

SD RAM AND SD RAM SLOT HD IMAGE
SD RAM AND SD RAM SLOT HD IMAGE

दोस्तों एस डी रैम की शुरुआत 1990  से 1992  के बीच में हुई। यह  रैम काफी ज्यादा प्रचलित हुआ। यह रैम 132 मेगाहर्ट्ज की स्पीड से कार्य करती थी। जो कि उस जमाने के हिसाब से काफी ज्यादा स्पीड थी। यह रैम P1, P2, P3 मदर बोर्ड में काम में लिया जाता था। पी 3 मदरबोर्ड तक इस रैम को आते-आते इस रैम की स्पीड भी बढ़ गई।
यह 132 मेगाहर्ट्ज से लेकर 200 मेगाहर्ट्ज तक आने लगी। इस रैम को पहचानने का सबसे खास तरीका था, कि इसके PINS के बीच में 2 कट  दिए रहते थे। इस रैम को पहचानने का यही सबसे खास तरीका है, और यह रैम आकार में काफी बड़े थे। यह रैम 64 mb से लेकर 138 mb तक के आते थे। कुछ इन से ज्यादा के भी थे।

नोट :-

दोस्तों इस रैम के बाद डिम रैम ( DIMM RAM ) आने लग गए। जिसके बारे में, मैं पार्टिकुलर अलग से पोस्ट लिखने वाला हूं, जो कि हमारा नेक्स्ट पोस्ट होगा। तो प्लीज अगर आप आज के जमाने के रैम के बारे में पूरी तरह से जानना चाहते हैं, तो प्लीज हमारा अगला पोस्ट जरूर पढ़िए और नए जमाने के रैम के बारे में अच्छे से जानिए। तो चलिए अभी के लिए चलते हैं, और फिर मिलेंगे अगले पोस्ट पर। और अगर मैं यह पोस्ट लिख देता हूं, तो लिंक आपको नीचे दे दिया जाएगा। 
1:44 AM

रैम का शुरुआती दौर | Ram Full Details

रैम का शुरुआती दौर | Ram Full Details

दोस्तों आज के इस पोस्ट में हम शुरुआती दौर के उस रैम की बात करने जा रहे हैं, जिस रैम ने कंप्यूटर का इतिहास ही बदल कर रख दिया। कंप्यूटर की दुनिया में इस  रैम ने एक अलग ही मुकाम बना लिया था। यह बहुत ही ज्यादा प्रचलित हुआ, और सब की पहली पसंद बन गया। और भविष्य को बेहतर बनाने के लिए इसी रैम ने सर्वप्रथम योगदान दिया था। तो आइए इस  रैम को जानने से पहले हम कुछ और बातों के बारे में भी जान लेते हैं, जिन्हें आपको जानना जरूरी है।

अगर आपने हमारा पिछला पोस्ट नहीं पढ़ा है, तो प्लीज हमारा पिछला पोस्ट जरूर पढ़ लीजिएगा। तो चलिए अब अपने इस पोस्ट को स्टार्ट कर लेते हैं।

रैम की शुरुआत 

दोस्तों कंप्यूटर में रैम का इस्तेमाल 1940 के दशक में शुरू हुआ था। 1940 में बना पहला रैम मैग्नेटिक कोर मेमोरी, मैग्नेटिक रिंग के ऐरे पर निर्भर करती थी, और प्रत्येक  रिंग को मैग्नेटिकेट किया जाता था। और उसके बाद उसमें डाटा को स्टोर किया जाता था, और हर एक रिंग मे 1 bit data स्टोर होता था।

वैसे तो आज के जमाने में एक बिट का कोई वैल्यू नहीं है, क्योंकि आज के जमाने में रैम जीबी (GB) में आते हैं। पहले के जमाने में जब रैम की शुरुआत हुई थी। तब एक बिट से शुरुआत हुई। दोस्तों शुरुआती दौर में जो रैम आया था, वह एक IC  के रूप में आया था। जब वैज्ञानिको को वास्तव में रैम बनाने में सफलता मिली, वह एक IC  के रूप में सफलता मिली। वैसे तो मैंने आपको पहले भी बता दिया है, कि पहला रैम जो बना था। वह रैम मैग्नेटिक रिंग के ऊपर निर्भर करती थी। उस रैम में जो रिंग होता था, वह मैग्नेटिक होता था। उसी रिंग में सारा डाटा स्टोर होता था। पर जब वैज्ञानिकों ने नया टेक्नोलॉजी का आविष्कार किया। और नई रैम बनाई। तब जाकर जो रेम सक्सेस हुआ वह एक IC  के रूप में सक्सेस हुआ। जिसका इमेज आपको पोस्ट में मिल जाएगा, और उस रैम का नाम  डीप रैम है।

Dipp ram
Dipp ram 
और इस रैम को बनाने के लिए वैज्ञानिक को वास्तव में सफलता 1970 के दशक में मिली।
 तो दोस्तों 1970 के दशक में आई सी ( IC ) वाले रैम  का आविष्कार हुआ, और उसके बाद 1981 के आसपास आई सी वाले रैम कार्ड में आने लगे। ताकि उनकी कैपेसिटी को बढ़ाया जा सके। अर्थात कंप्यूटर में जो राम लगा होता है, उस रैम की कैपेसिटी को बढ़ा सके। इसीलिए कार्ड्स के अंदर उनको फिट करके उनकी कैपेसिटी को बढ़ाया गया। 

अगर आपको सरल भाषा में समझाऊं तो, आपने अपना कंप्यूटर देखा होगा, या किसी का भी कंप्यूटर देखा होगा। कंप्यूटर के अंदर जिस प्रकार कई सारी चीजें उसमें लगती है, उस में हार्ड डिक्स लगती है, रैम लगती है, डीवीडी राइटर लगता है। कहीं सारी चीजें लगती है। इन सभी चीजों के लगने के बाद जिस प्रकार एक कंप्यूटर बनकर तैयार होता है। उसी प्रकार रैम  की कैपेसिटी को बढ़ाने के लिए ऐसे कार्ड का अविष्कार किया गया, जिस कार्ड के अंदर उन रैम वाली आई सी को फिट किया जा सके। और ऐसा कार्ड बनकर तैयार हुआ जिस कार्ड के अंदर एक साथ कई सारे IC फिट किए गए। जिसका नाम डीप ( DIPP ) रैम रखा गया। 

डीप रैम ( DIPP RAM )  की कैपेसिटी ( सन 1981 ) 

DIPP RAM CARD
DIPP RAM CARD

दोस्तों इस राम की कैपेसिटी 16kb केबी से लेकर 64kb तक की होती थी और इसकी स्पीड 5 मेगा हर्ट्ज थी अब आप कहेंगे कि यह केबी ( KB ) क्या है? और 5 मेगाहर्ट्ज ( Mhz ) क्या है?

सीधी भाषा में आपको बता देता हूं, कि यह केबी ( KB ) उस रैम की कैपेसिटी है, जिस प्रकार आज के जमाने में हमारे जो पेनड्राइव आते हैं। उस पेनड्राइव की कैपेसिटी 8GB, 16GB, 64GB की होती है। उसी प्रकार 64kb उसकी कैपेसिटी है, और वह 5 मेगाहर्ट्ज उसकी स्पीड है। कि वह रैम कितनी स्पीड से उस 64kb डाटा को हैंडल करता है, और प्रोसेस करता है। मतलब के वह 1 सेकेंड के अंदर 5 मेगाहर्ट्ज की स्पीड से 64 Kb डाटा को ट्रांसफर करता था। अब आप कहेंगे कि सिर्फ 64 KB और 5 मेगा हर्ट्ज की स्पीड से कोई रेम अगर कोई डाटा को भेजता था आगे। 
तो इतनी छोटी फाइल कहां से आती थी, तो दोस्तों मैं सीधी तौर पर आपको बता दूं, कि उस टाइम कंप्यूटर का इतना यूज नहीं किया जाता था। उस टाइम डॉस फाइल होती थी। जो कि केबी ( KB ) में ही बनती थी। और केबी ( KB ) में ही होती थी। और उस टाइम इतना एप्लीकेशन भी नहीं था, कि ज्यादा कोई बड़े एप्लीकेशन चलाने की नौबत आए। ऐसा कुछ भी नहीं था, इसीलिए इतनी केपेसिटी उस टाइम के कंप्यूटर के लिए काफी था। 

डीप रैम ( DIPP RAM )  सन 1982  

DIPP RAM CARD 1982
DIPP RAM CARD 1982

अब दोस्तों जैसे-जैसे टेक्नोलॉजी आगे बढ़ती गई, वैसे-वैसे चीजें बदलती गई। नए आविष्कार होते गए। उसी में एक दौर आया जो कि 1982 मैं आया। सन 1982 को एक नए प्रकार का रैम सामने आया। वह कार्ड में ही आते थे। पर अब वैज्ञानिकों के सामने एक चुनौती थी कि उस रैम की कैपेसिटी को किस तरह से बढ़ाया जाए। तो वैज्ञानिकों ने काफी मेहनत करके एक ऐसा कार्ड बनाया, जिसके अंदर उस आईसी को, जो कि पीछे हमने सन 1981 में देखा था, कि उसमें एक IC होती थी, जो कि डाटा को स्टोर करती थी। ठीक उसी प्रकार की आईसी  के लिए एक ऐसे कार्ड का आविष्कार किया गया। जिसमें कि उस आईसी को फिट करने के लिए कई सारे स्लॉट दे दिए गए। उस कार्ड में स्लॉट संख्या में ज्यादा होने की वजह से, हम अपनी जरूरत के हिसाब से उसमें रैम को बढ़ा सकते थे। 

तो इस प्रकार वैज्ञानिकों ने रैम की कैपेसिटी को बढ़ाने के लिए, इस प्रकार का एक जुगाड़ निकाला। जिससे कि हमें अपने कंप्यूटर के रैम को बढ़ाने में सहायता मिल सकी। 

इस नए कार्ड के आते ही इसकी कैपेसिटी बढ़ गई। यह 64 kb से लेकर 256 kb तक की कैपेसिटी बढ़ाई जा सकती थी। पर दोस्तों यह 5 मेगा हर्ट्ज़ की स्पीड से ही कार्य करता था। जो कि हमारे पहले वाले रैम कार्ड में था। इसकी स्पीड इतनी थी। बस इसकी कैपेसिटी को बढ़ा दिया गया। 

डीप रैम ( DIPP RAM )  सन 1985 

DIPP RAM CARD 1985
DIPP RAM CARD 1985

अब दोस्तों जैसा कि आप जानते हैं, कि टेक्नोलॉजी कभी रुकती नहीं है। टेक्नोलॉजी आगे बढ़ती रहती है, तो वैज्ञानिकों ने काफी मेहनत करके उसी कार्ड को थोड़ा और बड़ा कर दिया। जिससे कि उसमें कई सारे आई सी और लगा सकते थे। और उसके स्लॉट भी बढ़ा दिए गए। जिससे कि और भी ज्यादा आईसी लगा सकते थे। अब दोस्तों इस की कैपेसिटी 2 एम बी ( 2 MB ) तक की हो गई थी। आप 2 MB तक के रैम इसमें फिट कर सकते थे। और दोस्तों इसमें आपकी स्पीड भी बढ़ा दी गई। जब यह नए कार्ड का आविष्कार हुआ तब इसकी कैपेसिटी 10 मेगा हर्ट्ज की हो गई थी। जो कि पहले 5 मेगा हर्ट्ज थी। वह अब 10 मेगा हर्ट्ज  की आने लग गई। यह सन 1985 में पहली बार इस तरह के कार्ड का आविष्कार किया गया। जिससे कि हमारा कंप्यूटर और भी तेजी से कार्य करने लगा, और टेक्नोलॉजी का काफी हद तक, और काफी ज्यादा स्पीड मिला, हमारे कार्य करने की क्षमता को। 

NOTE :-

दोस्तों आज की पोस्ट में बस इतना ही था। आगे की पोस्ट में हम रैम के बारे में और भी ज्यादा जानेंगे। कि डीप रैम के बाद कौन-कौन से और रैम आए। और किस तरह से उन्होंने अपना योगदान दिया। 

दोस्तों मुझे ऐसा लग रहा था कि यह पोस्ट काफी  लंबा बन चुका है, इसीलिए हम इस पोस्ट को इधर ही रोक रहे हैं। आगे की पोस्ट को पढ़ना ना भूलियेगा।  आगे की पोस्ट में हम इसी टॉपिक को आगे लेकर चलेंगे, और आपको बाकी के बचे रैम के बारे में बताएंगे। तो हमारे उस पोस्ट का लिंक आपको नीचे मिल जाएगा। तो चलिए चलते हैं और मिलेंगे नेक्स्ट पोस्ट पर। 

Monday, September 16, 2019

12:50 AM

रैम का इतिहास ( History of RAM )

 रैम का इतिहास ( History of RAM )

old computer ram
old computer ram

दोस्तों कंप्यूटर में रैम का इस्तेमाल 1940 के दशक में शुरू हुआ था। 1940 में बना पहला रैम मैग्नेटिक कोर मेमोरी, मैग्नेटिक रिंग के ऐरे पर निर्भर करती थी, और प्रत्येक  रिंग को मैग्नेटिकेट किया जाता था। और उसके बाद उसमें डाटा को स्टोर किया जाता था, और हर एक रिंग मे 1 bit data स्टोर होता था।

उस टाइम 1 बीट डाटा भी बहुत ज्यादा होता था। क्योंकि उस टाइम  Ram की शुरुआत हुई थी। और मैग्नेटिज़ेशन कि डायरेक्शन 0  या 1  को इंडिकेट करते थें।

वैज्ञानिकों को वास्तव में सफलता मिली

कंप्यूटर मेमोरी के लिए जो वैज्ञानिकों को वास्तव में सफलता मिली। वह 1970 के दशक में मिली। यह सफलता उनको इंटीग्रेटेड सर्किट जिसे आजकल हम आईसी कहते हैं। उस आई सी के रूप में मिली। यह सॉलिड स्टेट मेमोरी होती है, और इस आई सी ( IC ) के, मेरा मतलब के इस इंटीग्रेटेड सर्किट के आविष्कार के बाद कंप्यूटर जगत में एक नई क्रांति आ गई। इसमें बहुत छोटे ट्रांजिस्टर का उपयोग किया जाता था, और इसी के परिणाम स्वरूप इस आईसी में बहुत ही कम जगह में काफी ज्यादा इंफॉर्मेशन स्टोर करना संभव हो पाया। हालांकि मेमोरी डेंनसिटी में यह वृद्धि अस्थिरता की कीमत पर आए।

प्रत्येक ट्रांजिस्टर की स्थिति बनाए रखने के लिए एक निरंतर बिजली की आपूर्ति की आवश्यकता होती है, अर्थात इनको लगातार बिजली की जरूरत पड़ती थी, और काफी ज्यादा बिजली की खपत होती थी। जिससे एक नए युग का तो आरंभ हो गया। पर बिजली की खपत भी बढ़ गई।
इस मेमोरी को उस वक्त डीप ( DIPP ) मेमोरी कहा जाने लगा। इसके बाद वैज्ञानिकों ने काफी मेहनत किया   और सीप ( SIPP ) मेमोरी का आविष्कार किया।

सीप मेमोरी ( SIPP )


इस रैम का आविष्कार होते ही रैम की कैपेसिटी बढ़ गई। यह सामान्य तौर पर 30 pin का आता था। जिसका फोटो आपको ऊपर  मिल जाएगा।
इसके बाद सिम रैम ( SIMM RAM ) आने लगा। इसके भी 30-pin ही होते थे।
पर यह कार्ड के रूप में आने लगा।
उसके बाद 72 PIN  के सिम रैम आने लगे।
ALL TYPES RAM
ALL TYPES RAM

उसके बाद डिम रेम ( DIMM Ram ) आने लगे इसमें 168 पिन आती थी। जिसे हम एस.डी रैम कहते हैं।
और उसके बाद  डी डी आर वन रैम आने लगा, और फिर DDR2 रैम आने लगा, और फिर ddr3, और अभी जो लेटेस्ट में चल रहा है, ddr4 रैम है।

NOTE ;-

हमने ऊपर जितने भी तरह के रैम के बारे में बात की। उनमें से लगभग सारे बंद हो चुके हैं, खाली DDR2 रैम, ddr3 रैम, और ddr4 रैम ही आपको ज्यादातर देखने को मिलेगा। और अभी जो लेटेस्ट में चल रहा है ddr4 रैम। वही सबसे ज्यादा आपको देखने को मिलेगा।

इस पोस्ट में हमने क्या सीखा 

तो दोस्तों आज के इस पोस्ट में हमने जाना के, रेम का क्या इतिहास है। रैम को कब पहली बार उपयोग में लिया गया। और किस सन में रैम पहली बार आया था। और हम ने यह जाना के शुरू से लेकर अब तक कितने प्रकार की रैम आ चुकी है।

दोस्तों आज के इस पोस्ट में बस इतना ही था। नेक्स्ट पोस्ट में हम रेम के बारे में और भी ज्यादा विस्तार से जानने की कोशिश करेंगे। तो हमारा आने वाला पोस्ट जरूर पढियेगा। और अगर आप को हमारा यह पोस्ट पसंद आया हो तो हमारे इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा शेयर कीजिए। ताकि दूसरे लोग भी अपना ज्ञान बढ़ा सके। और कमेंट करना ना भूलियेगा। 

Sunday, September 15, 2019

7:26 PM

ओ.एल.इ.डी. ( OLED ) और क्यू-एलईडी ( QLED ) में क्या फर्क है ? ( OLed and QLed Difference )

ओ.एल.इ.डी. ( OLED ) और क्यू-एलईडी ( QLED ) में क्या फर्क है ?

ओ.एल.इ.डी. ( OLED ) और क्यू-एलईडी ( QLED ) में क्या फर्क है ? ( OLed and QLed Difference )
ओ.एल.इ.डी. ( OLED ) और क्यू-एलईडी ( QLED ) में क्या फर्क है ? ( OLed and QLed Difference )

आज के इस पोस्ट में हम ओ.एल.इ.डी. ( OLED ) और क्यू-एलईडी ( QLED )में फर्क जानेंगे। कि इन दोनों में क्या क्या फर्क होता है, और इन दोनों में कलर कितना डिफरेंट हो जाता है। इनके एलईडी पैनल किस तरह से लगी होती है, और इनका क्या वर्क होता है। तो चलिए बिना वक्त गवाएं स्टार्ट कर लेते हैं, हमारा आज का यह पोस्ट।

ओ.एल.इ.डी. ( OLED )


जिस प्रकार आपने  एल.ई.डी. में देखा था, के उसमें डिस्प्ले को रोशनी देने के लिए पीछे एल.ई.डी. का पैनल होता था। पर ओ.एल.इ.डी. ( OLED ) में कोई पैनल नहीं होता है। ओ.एल.इ.डी. में यह होता है, कि हर एक पिक्सल ( Pixels ) के लिए एक एल.ई.डी. होता है। अर्थात हमारे ओ.एल.इ.डी. ( OLED ) के अंदर जितने भी पिक्सल का वह एलईडी होगा। उतना ही उसमें एलईडी लाइट लगा होगा। हर एक पिक्सल के लिए एक एलईडी यूज़ की जाती है। जिससे कि हमारे वीडियो क्वॉलिटी काफी अच्छी हो जाती है, और कंट्रास काफी उभर कर आते हैं। जिससे कि हमें रियल लाइफ एक्सपीरियंस होता है, और यह एलईडी बाकी एल.इ.डी. की तुलना में काफी महंगी आती है। और बहुत ही ज्यादा स्लिम आती है।

खास बात

इस एलईडी की एक और खास बात यह होती है, कि इसमें हर एक पिक्सल के एलईडी को अर्थात, एक पर्टिकुलर एलईडी को हम अपने हिसाब से ऑफ कर सकते हैं, और ऑन कर सकते हैं, और अपने हिसाब से उसको एडजेस्ट भी कर सकते हैं। जिससे कि कोई भी कलर बिल्कुल परफेक्ट दिखाई देता है, और ब्लैक पूरी तरह से ब्लैक दिखाई देता है, और वाइट पूरी तरह से वाइट दिखाई देता है। आपने कभी देखा होगा कि नॉर्मल एलईडी टीवी के अंदर उसका जो डिस्प्ले होता है, उस डिस्प्ले के 8 लेयर होते हैं। जो कि आपको इमेज में दिखाई दे रहा होगा।
LED and OLed Difference
LED and OLed Difference

इन 8 लेयर में से सबसे पीछे वाला जो लेयर होता है, वह बैक लाइट के लिए होता है, और ओ.एल.ई.डी. में इन 8 लेयर में से 5 लेयर एक साथ जुड़ जाते हैं, और सामने के 3 लेयर सेम टू सेम रहते हैं। जिससे कि ओ.एल.ई.डी बहुत ही स्लिम हो जाता है, और नॉर्मल एलईडी की तुलना में यह काफी पतला दिखाई देता है।  आप एक नॉर्मल एल.ई.डी को ले लीजिए, और उसके पास ही ओ एल ई डी को रख दीजिए। आप देखेंगे कि इसमें जो कलर के कंट्रोल्स होते हैं, वह कितने अलग होते हैं। और कितने डिफरेंट हो जाते हैं। और ओ एल ई डी में आप  कर्ब वगैरह काफी आसानी से कर सकते हैं, और आपके वीडियो क्वालिटी या इमेज क्वालिटी में भी कोई फर्क नहीं पड़ता है। इसमें इमेज क़्वालिटी इतनी अच्छी हो जाती है, की आप को एक रियल लाइफ इमेज का अनुभव होता है।

क्यू-एलईडी ( QLED )


दोस्तों क्यू-एलईडी ( QLED ) ओ एल ई डी की तरह ही होता है, इसमें भी हर एक पिक्सल के लिए अलग से एक एलईडी होती है। एक पिक्सल के लिए एक एलईडी, और हर एक पिक्सल इतना क्लियर होता है, इतना साफ होता है, कि आपको ऐसा महसूस होता है, कि वह बिल्कुल आपके सामने ही हो।

मतलब के जो वीडियो आप देख रहे हैं, वह ऐसा लगता है, कि आपके सामने ही वह सब हो रहा है। इतना क्लियर इसका वीडियो क्वालिटी है। और इतना साफ दिखाई देता है, कि आपको एक रियल लाइफ एक्सपीरियंस देता है। और दोस्तों इसकी कॉस्ट की बात करें, तो यह बहुत ही ज्यादा कॉस्टली आता है, मतलब कि यह बहुत ही ज्यादा महंगा आता है। एक आम आदमी इस एलईडी टीवी को नहीं खरीद सकता है। क्योंकि इसकी प्राइस नॉर्मल एलईडी की तुलना में काफी ज्यादा महंगी होती है।

क्यू-एलईडी ( QLED ) लगाने के बाद ऐसा लगेगा आपको

इसकी मेगापिक्सल भी बहुत ज्यादा होती है। और अगर आपके घर में क्यू-एलईडी ( QLED ) टीवी लगा हुआ है, तो आपको देखने पर ऐसा महसूस होगा, कि यहां कोई टीवी लगा हुआ ही नहीं है, यहाँ एक पेपर लगा हुआ है, ऐसा लगेगा आपको। क्योंकि यह इतना पतला, इतना स्लिम होता है, कि आपको देखने में यह बिल्कुल पेपर की तरह लगेगा। आपको ऐसा लगेगा कि आपके सामने कोई फोटो चिपका रखी हो। इतना पतला होता है, यह।
क्यों एलईडी टीवी का हर एक पिक्सेल इतना क्लियर इमेज लेकर आता है, इतना क्लियर कलर लेकर आता है, कि आप यकीन नहीं कर सकते के, यह असल में टीवी ही है या कोई फोटो।

दोस्तों इस एलईडी टीवी में काफी ज्यादा हाई क्वालिटी की टेक्नोलॉजी यूज़ में ली गई है। इसीलिए इसमें रेट का इतना फर्क पड़ जाता है, कि यह काफी ज्यादा महंगा हो जाता है, और काफी ज्यादा पतला भी हो जाता है।

NOTE :-


तो दोस्तों अब तक आपको समझ में आ गया होगा कि ओ.एल.इ.डी. ( OLED ) और क्यू-एलईडी ( QLED ) में क्या फर्क होता है, और यह दोनों क्यों इतने महंगे आते हैं। अगर आपको नॉरमल एलइडी या सीटीआर टीवी के बारे में जानना है, तो आप हमारे पिछले पोस्ट को पढ़ें। 

अगर आपको हमारा यह पोस्ट पसंद आया है, तो हमें कमेंट करके बताना ना भूलिए। साथ ही साथ अपने दोस्तों को भी शेयर कीजिए, जिससे कि उन्हें पता चल सके कि इन में क्या फर्क होता है, और आपके लिए कौन सा एलइडी टीवी बेस्ट रहेगा। 
6:04 PM

एल.ई.डी. और ओ.एल.इ.डी. ( OLED ) में क्या फर्क होता है ( LED and OLED difference )

एल.ई.डी. और ओ.एल.इ.डी. ( OLED ) में क्या फर्क होता है?

दोस्तों आज के इस पोस्ट में हम एल.ई.डी. और ओ.एल.इ.डी. ( OLED ) के बारे में विस्तार से जानेंगे।
पिछले पोस्ट में हमने एलसीडी और एलईडी में क्या फर्क होता है। वह पता किया था। और आज के इस पोस्ट में हम एलईडी और ओ.एल.ई.डी. ( OLED ) में फर्क जानेंगे। तो चलिए बिना वक़्त गवाए शुरू कर लेते हैं।
LED vs OLED
LED vs OLED

एल.ई.डी. ( LED )



दोस्तों एल.ई.डी. ( LED ) का फुल फॉर्म लाइट एमिटिंग डायोड ( Light emitting diode ) होता है।
दोस्तों एल.सी.डी. और एल.ई.डी. में कोई ज्यादा डिफरेंस नहीं होता है। इसके अंदर भी वही क्रिस्टल होते हैं, जो कि लिक्विड क्रिस्टल है। सेम एल.ई.डी. में भी वही क्रिस्टल होते हैं। बस जो बैक साइट से जो हम लाइट देते हैं, वह बिल्कुल पूरे डिस्प्ले के बैक साइड में एल.ई.डी. की पैनल्स बनी होती है। और उस पैनल्स में भी जो रौशनी करने के लिए जो पैनल्स होते हैं, वह पैनल्स काफी छोटे छोटे होते हैं, जो पूरे डिस्प्ले में लगे होते हैं, और जो एल.ई.डी. होती है, वह कई सारी एल.ई.डी. एक साथ मिलकर एक ग्रुप बनाती है, और उस ग्रुप को हम एलईडी पैनल कहते हैं।
जो कि पूरे डिस्प्ले के बैक साइड में फैली होती है।

चूँ कि यह एल.ई.डी. ( LED ) है, और यह एल.ई.डी. ( LED ) काफी पतली भी बन सकती है। यही कारण है, की एल.सी.डी. से एल.ई.डी. काफी पतला होता है। और एल.ई.डी. को काफी स्लिम बनाया जा सकता है। और दूसरा जो इसमें फायदा होता है, वह यह होता है, कि एल.ई.डी. टीवी काफी कम करंट की खपत करती है। अर्थात एल.इ.डी. को चलाने के लिए काफी कम करंट की जरूरत पड़ती है। जिससे हमारे बिजली की भी बचत होती है।

ओ.एल.इ.डी. ( OLED )


जिस प्रकार आपने  एल.ई.डी. में देखा था, के उसमें डिस्प्ले को रोशनी देने के लिए पीछे एल.ई.डी. का पैनल होता था। पर ओ.एल.इ.डी. ( OLED ) में कोई पैनल नहीं होता है। ओ.एल.इ.डी. में यह होता है, कि हर एक पिक्सल ( Pixels ) के लिए एक एल.ई.डी. होता है। अर्थात हमारे ओ.एल.इ.डी. ( OLED ) के अंदर जितने भी पिक्सल का वह एलईडी होगा। उतना ही उसमें एलईडी लाइट लगा होगा। हर एक पिक्सल के लिए एक एलईडी यूज़ की जाती है। जिससे कि हमारे वीडियो क्वॉलिटी काफी अच्छी हो जाती है, और कंट्रास काफी उभर कर आते हैं। जिससे कि हमें रियल लाइफ एक्सपीरियंस होता है, और यह एलईडी बाकी एल.इ.डी. की तुलना में काफी महंगी आती है। और बहुत ही ज्यादा स्लिम आती है।

ओ.एल.ई.डी. खास बात

इस एलईडी की एक और खास बात यह होती है, कि इसमें हर एक पिक्सल के एलईडी को अर्थात, एक पर्टिकुलर एलईडी को हम अपने हिसाब से ऑफ कर सकते हैं, और ऑन कर सकते हैं, और अपने हिसाब से उसको एडजेस्ट भी कर सकते हैं। जिससे कि कोई भी कलर बिल्कुल परफेक्ट दिखाई देता है, और ब्लैक पूरी तरह से ब्लैक दिखाई देता है, और वाइट पूरी तरह से वाइट दिखाई देता है। आपने कभी देखा होगा कि नॉर्मल एलईडी टीवी के अंदर उसका जो डिस्प्ले होता है, उस डिस्प्ले के 8 लेयर होते हैं। जो कि आपको इमेज में दिखाई दे रहा होगा।
एल.ई.डी. और ओ.एल.इ.डी. ( OLED ) में क्या फर्क होता है ( LED and OLED difference )
एल.ई.डी. और ओ.एल.इ.डी. ( OLED ) में क्या फर्क होता है ( LED and OLED difference )

इन 8 लेयर में से सबसे पीछे वाला जो लेयर होता है, वह बैक लाइट के लिए होता है, और ओ.एल.ई.डी. में इन 8 लेयर में से 5 लेयर एक साथ जुड़ जाते हैं, और सामने के 3 लेयर सेम टू सेम रहते हैं। जिससे कि ओ.एल.ई.डी बहुत ही स्लिम हो जाता है, और नॉर्मल एलईडी की तुलना में यह काफी पतला दिखाई देता है।  आप एक नॉर्मल एल.ई.डी को ले लीजिए, और उसके पास ही ओ एल ई डी को रख दीजिए। आप देखेंगे कि इसमें जो कलर के कंट्रोल्स होते हैं, वह कितने अलग होते हैं। और कितने डिफरेंट हो जाते हैं। और ओ एल ई डी में आप  कर्ब वगैरह काफी आसानी से कर सकते हैं, और आपके वीडियो क्वालिटी या इमेज क्वालिटी में भी कोई फर्क नहीं पड़ता है। इसमें इमेज क़्वालिटी इतनी अच्छी हो जाती है, की आप को एक रियल लाइफ इमेज का अनुभव होता है।

NOTE :-
तो दोस्तों, आपको हमारा आज का यह पोस्ट कैसा लगा। हमें कमेंट करके जरूर बताइए और दोस्तों आगे की पोस्ट में मैं क्यों एलईडी ( Q-LED )के बारे में बताने जा रहा हूं, तो प्लीज आगे वाला पोस्ट जरूर पढ़ें, और अगर मैं उस पोस्ट को लिख देता हूं, तो आपको नीचे उसका लिंक मिल जाएगा। तो चलिए चलते हैं, और मिलते हैं, नेक्स्ट पोस्ट पर।