रैम का शुरुआती दौर | Ram Full Details
दोस्तों आज के इस पोस्ट में हम शुरुआती दौर के उस रैम की बात करने जा रहे हैं, जिस रैम ने कंप्यूटर का इतिहास ही बदल कर रख दिया। कंप्यूटर की दुनिया में इस रैम ने एक अलग ही मुकाम बना लिया था। यह बहुत ही ज्यादा प्रचलित हुआ, और सब की पहली पसंद बन गया। और भविष्य को बेहतर बनाने के लिए इसी रैम ने सर्वप्रथम योगदान दिया था। तो आइए इस रैम को जानने से पहले हम कुछ और बातों के बारे में भी जान लेते हैं, जिन्हें आपको जानना जरूरी है।अगर आपने हमारा पिछला पोस्ट नहीं पढ़ा है, तो प्लीज हमारा पिछला पोस्ट जरूर पढ़ लीजिएगा। तो चलिए अब अपने इस पोस्ट को स्टार्ट कर लेते हैं।
रैम की शुरुआत
दोस्तों कंप्यूटर में रैम का इस्तेमाल 1940 के दशक में शुरू हुआ था। 1940 में बना पहला रैम मैग्नेटिक कोर मेमोरी, मैग्नेटिक रिंग के ऐरे पर निर्भर करती थी, और प्रत्येक रिंग को मैग्नेटिकेट किया जाता था। और उसके बाद उसमें डाटा को स्टोर किया जाता था, और हर एक रिंग मे 1 bit data स्टोर होता था।वैसे तो आज के जमाने में एक बिट का कोई वैल्यू नहीं है, क्योंकि आज के जमाने में रैम जीबी (GB) में आते हैं। पहले के जमाने में जब रैम की शुरुआत हुई थी। तब एक बिट से शुरुआत हुई। दोस्तों शुरुआती दौर में जो रैम आया था, वह एक IC के रूप में आया था। जब वैज्ञानिको को वास्तव में रैम बनाने में सफलता मिली, वह एक IC के रूप में सफलता मिली। वैसे तो मैंने आपको पहले भी बता दिया है, कि पहला रैम जो बना था। वह रैम मैग्नेटिक रिंग के ऊपर निर्भर करती थी। उस रैम में जो रिंग होता था, वह मैग्नेटिक होता था। उसी रिंग में सारा डाटा स्टोर होता था। पर जब वैज्ञानिकों ने नया टेक्नोलॉजी का आविष्कार किया। और नई रैम बनाई। तब जाकर जो रेम सक्सेस हुआ वह एक IC के रूप में सक्सेस हुआ। जिसका इमेज आपको पोस्ट में मिल जाएगा, और उस रैम का नाम डीप रैम है।
![]() |
Dipp ram |
तो दोस्तों 1970 के दशक में आई सी ( IC ) वाले रैम का आविष्कार हुआ, और उसके बाद 1981 के आसपास आई सी वाले रैम कार्ड में आने लगे। ताकि उनकी कैपेसिटी को बढ़ाया जा सके। अर्थात कंप्यूटर में जो राम लगा होता है, उस रैम की कैपेसिटी को बढ़ा सके। इसीलिए कार्ड्स के अंदर उनको फिट करके उनकी कैपेसिटी को बढ़ाया गया।
अगर आपको सरल भाषा में समझाऊं तो, आपने अपना कंप्यूटर देखा होगा, या किसी का भी कंप्यूटर देखा होगा। कंप्यूटर के अंदर जिस प्रकार कई सारी चीजें उसमें लगती है, उस में हार्ड डिक्स लगती है, रैम लगती है, डीवीडी राइटर लगता है। कहीं सारी चीजें लगती है। इन सभी चीजों के लगने के बाद जिस प्रकार एक कंप्यूटर बनकर तैयार होता है। उसी प्रकार रैम की कैपेसिटी को बढ़ाने के लिए ऐसे कार्ड का अविष्कार किया गया, जिस कार्ड के अंदर उन रैम वाली आई सी को फिट किया जा सके। और ऐसा कार्ड बनकर तैयार हुआ जिस कार्ड के अंदर एक साथ कई सारे IC फिट किए गए। जिसका नाम डीप ( DIPP ) रैम रखा गया।
डीप रैम ( DIPP RAM ) की कैपेसिटी ( सन 1981 )
![]() |
DIPP RAM CARD |
दोस्तों इस राम की कैपेसिटी 16kb केबी से लेकर 64kb तक की होती थी और इसकी स्पीड 5 मेगा हर्ट्ज थी अब आप कहेंगे कि यह केबी ( KB ) क्या है? और 5 मेगाहर्ट्ज ( Mhz ) क्या है?
सीधी भाषा में आपको बता देता हूं, कि यह केबी ( KB ) उस रैम की कैपेसिटी है, जिस प्रकार आज के जमाने में हमारे जो पेनड्राइव आते हैं। उस पेनड्राइव की कैपेसिटी 8GB, 16GB, 64GB की होती है। उसी प्रकार 64kb उसकी कैपेसिटी है, और वह 5 मेगाहर्ट्ज उसकी स्पीड है। कि वह रैम कितनी स्पीड से उस 64kb डाटा को हैंडल करता है, और प्रोसेस करता है। मतलब के वह 1 सेकेंड के अंदर 5 मेगाहर्ट्ज की स्पीड से 64 Kb डाटा को ट्रांसफर करता था। अब आप कहेंगे कि सिर्फ 64 KB और 5 मेगा हर्ट्ज की स्पीड से कोई रेम अगर कोई डाटा को भेजता था आगे।
तो इतनी छोटी फाइल कहां से आती थी, तो दोस्तों मैं सीधी तौर पर आपको बता दूं, कि उस टाइम कंप्यूटर का इतना यूज नहीं किया जाता था। उस टाइम डॉस फाइल होती थी। जो कि केबी ( KB ) में ही बनती थी। और केबी ( KB ) में ही होती थी। और उस टाइम इतना एप्लीकेशन भी नहीं था, कि ज्यादा कोई बड़े एप्लीकेशन चलाने की नौबत आए। ऐसा कुछ भी नहीं था, इसीलिए इतनी केपेसिटी उस टाइम के कंप्यूटर के लिए काफी था।
डीप रैम ( DIPP RAM ) सन 1982
![]() |
DIPP RAM CARD 1982 |
अब दोस्तों जैसे-जैसे टेक्नोलॉजी आगे बढ़ती गई, वैसे-वैसे चीजें बदलती गई। नए आविष्कार होते गए। उसी में एक दौर आया जो कि 1982 मैं आया। सन 1982 को एक नए प्रकार का रैम सामने आया। वह कार्ड में ही आते थे। पर अब वैज्ञानिकों के सामने एक चुनौती थी कि उस रैम की कैपेसिटी को किस तरह से बढ़ाया जाए। तो वैज्ञानिकों ने काफी मेहनत करके एक ऐसा कार्ड बनाया, जिसके अंदर उस आईसी को, जो कि पीछे हमने सन 1981 में देखा था, कि उसमें एक IC होती थी, जो कि डाटा को स्टोर करती थी। ठीक उसी प्रकार की आईसी के लिए एक ऐसे कार्ड का आविष्कार किया गया। जिसमें कि उस आईसी को फिट करने के लिए कई सारे स्लॉट दे दिए गए। उस कार्ड में स्लॉट संख्या में ज्यादा होने की वजह से, हम अपनी जरूरत के हिसाब से उसमें रैम को बढ़ा सकते थे।
तो इस प्रकार वैज्ञानिकों ने रैम की कैपेसिटी को बढ़ाने के लिए, इस प्रकार का एक जुगाड़ निकाला। जिससे कि हमें अपने कंप्यूटर के रैम को बढ़ाने में सहायता मिल सकी।
इस नए कार्ड के आते ही इसकी कैपेसिटी बढ़ गई। यह 64 kb से लेकर 256 kb तक की कैपेसिटी बढ़ाई जा सकती थी। पर दोस्तों यह 5 मेगा हर्ट्ज़ की स्पीड से ही कार्य करता था। जो कि हमारे पहले वाले रैम कार्ड में था। इसकी स्पीड इतनी थी। बस इसकी कैपेसिटी को बढ़ा दिया गया।
डीप रैम ( DIPP RAM ) सन 1985
![]() |
DIPP RAM CARD 1985 |
अब दोस्तों जैसा कि आप जानते हैं, कि टेक्नोलॉजी कभी रुकती नहीं है। टेक्नोलॉजी आगे बढ़ती रहती है, तो वैज्ञानिकों ने काफी मेहनत करके उसी कार्ड को थोड़ा और बड़ा कर दिया। जिससे कि उसमें कई सारे आई सी और लगा सकते थे। और उसके स्लॉट भी बढ़ा दिए गए। जिससे कि और भी ज्यादा आईसी लगा सकते थे। अब दोस्तों इस की कैपेसिटी 2 एम बी ( 2 MB ) तक की हो गई थी। आप 2 MB तक के रैम इसमें फिट कर सकते थे। और दोस्तों इसमें आपकी स्पीड भी बढ़ा दी गई। जब यह नए कार्ड का आविष्कार हुआ तब इसकी कैपेसिटी 10 मेगा हर्ट्ज की हो गई थी। जो कि पहले 5 मेगा हर्ट्ज थी। वह अब 10 मेगा हर्ट्ज की आने लग गई। यह सन 1985 में पहली बार इस तरह के कार्ड का आविष्कार किया गया। जिससे कि हमारा कंप्यूटर और भी तेजी से कार्य करने लगा, और टेक्नोलॉजी का काफी हद तक, और काफी ज्यादा स्पीड मिला, हमारे कार्य करने की क्षमता को।
NOTE :-
दोस्तों आज की पोस्ट में बस इतना ही था। आगे की पोस्ट में हम रैम के बारे में और भी ज्यादा जानेंगे। कि डीप रैम के बाद कौन-कौन से और रैम आए। और किस तरह से उन्होंने अपना योगदान दिया।
दोस्तों मुझे ऐसा लग रहा था कि यह पोस्ट काफी लंबा बन चुका है, इसीलिए हम इस पोस्ट को इधर ही रोक रहे हैं। आगे की पोस्ट को पढ़ना ना भूलियेगा। आगे की पोस्ट में हम इसी टॉपिक को आगे लेकर चलेंगे, और आपको बाकी के बचे रैम के बारे में बताएंगे। तो हमारे उस पोस्ट का लिंक आपको नीचे मिल जाएगा। तो चलिए चलते हैं और मिलेंगे नेक्स्ट पोस्ट पर।
No comments:
Post a Comment